कहानी
तीसरी औरत
रासबिहारी पाण्डेय
रमेंद्र
कुशवाह हिंदी के जानेमाने लेखक
थे।कविता,कहानी, उपन्यास,जीवनी,संस्मरण,यात्रा वृत्तांत,अनुवाद,संपादन ऐसी कोई
विधा नहीं थी जिसमें उन्होंने काम न किया हो।
उनके पिता भूपेंद्र कुशवाह करोड़ों की चल अचल संपत्ति
और अच्छा खासा बैंक बैलेंस छोड़कर मरे थे,इसलिए रमेंद्र को न तो जवानी में कुछ खास
चिंता करनी पड़ी,न ही बुढ़ापे में।जितने दिन मन लगा,काम किया नहीं तो छोड़कर घर आ
गए।
वे हिंदी के उन विरले लेखकों में थे जो चीनी,रुसी
और जर्मन भाषा भी बड़े अधिकार के साथ बोल सकते थे।अंग्रेजी तो वे किसी अंग्रेज से
भी अच्छी बोलते थे।कई नोबल पुरस्कार विजेताओं की कृतियों का उन्होंने हिंदी अनुवाद
भी किया था।मगर उनकी कुछ अजीबोगरीब आदतों की वजह से साहित्यिक बिरादरी उनसे कट कर
रहती थी।मसलन वे ज्यादेतर अपने ही बारे में बातें करना पसंद करते थे। मैंने यह
किया,मैंने वह किया,उसको वहाँ से निकलवा दिया,उसको वहाँ लगवा दिया,उसका पाजामा
ढ़ीला कर दिया,उसकी पैंट उतार दी आदि आदि।उन्होंने अपने समकालीन लेखकों के
अजीबोगरीब नाम भी रख छोड़े थे....किसी का वृषभ तो किसी का गजराज,किसी का
धृतराष्ट्र तो किसी का ययाति,किसी का दशानन तो किसी का जरासंध।वामपंथी लेखकों को
वे कार्ल मार्क्स,माओ,लेनिन आदि नामों से पुकारते थे और दलित लेखकों को अंबेडकर,कांशीराम,रैदास
आदि कहकर तंज कसते थे।
लेखिकाओं के लिए मायावती,जयललिता,ममता बनर्जी,हेलन,बिंदु,बंग
महिला,अनारकली जैसे छद्मनाम थे।साहित्य की छोटी सी दुनिया में ये बातें घूमफिरकर सबके
पास पहुँच जाती थीं,लेकिन रमेंद्र जी के रसूख और बड़ी उम्र के लिहाज से लोग उनसे
जिरह और बहस करने से कतराते थे....पर इसका नुकसान उन्हें दूसरे रूप में हुआ,वह ऐसे
कि उनके लेखन का न तो उचित मूल्यांकन हो पाया,न ही उन्हें कोई बड़ा एकेडमिक
पुरस्कार मिल पाया।समीक्षा करनेवाले और पुरस्कार समितियों में बैठे लेखक भी तो
आखिर इसी दुनिया के थे।वे अपने विरोधी को कैसे पुरस्कृत करते।
उन्हें किसी पार्टी विशेष से न जुड़ पाने का
खामियाजा भी भुगतना पड़ा।हालांकि वे जवानी के दिनों में घोषित वामपंथी थे लेकिन जब
वामी लोगों के तीन सांस्कृतिक संगठन बन गए-जलेस,प्रलेसऔर जसम....और इन तीनों में
से किसी ने उन्हे कोई महत्व नहीं दिया तो वे अक्सर वामपंथ की भी आलोचना करने लगे।विद्वान
तो थे ही...कई कई उदाहरण देकर साबित कर देते थे कि इन चुनी हुई चुप्पियों का मतलब क्या
है.... पार्टनर इस मुद्दे पर तो बोलते हो,फिर इस मुद्दे पर क्यों नहीं... ?
सत्तर वसंत देख चुकने,अपने पके बालों और बड़े
पेट के बावजूद रमेंद्र कुशवाह के रोमांस की इच्छा अभी मरी नहीं थी।पहली पत्नी मर
चुकी थी और उससे हुए दो बेटे जर्मनी में सेटल हो चुके थे।बेटों के शहर छोड़ने के
बाद उन्होंने एक अधेड़ महिला ज्योतिषी से शादी की थी,लेकिन एक साल के भीतर
ही वह इन्हें छोड़कर भाग खड़ी हुई।इस शादी का किस्सा बड़ा दिलचस्प है।वह महिला
दरियागंज में एक बहुत छोटी सी जगह लेकर ज्योतिष कार्यालय खोले हुए थी।रमेंद्र को
उनके लँगोटिया यार महेश दुबे ने बताया कि एक बहुत
कँटीली महिला भविष्यवक्ता आयी है इधर ... 500रुपये फीस है उसकी,इससे ज्यादा तो
अपना रोज दारू में खर्च हो जाता है.चलो एक दिन तफरीह करते हैं।हो सकता है तुम्हारे
काम की निकले।उसे भी शादी करनी है।किसी अच्छे रिश्ते की तलाश में है।
महेश का जब भी दारू पीने का मूड होता तो वह किसी रिश्ते की बात लेकर
उनके पास पहुँच जाता और फिर जमकर शाम रंगीन करता।वह इनकी मुलाकात कई विधवा,तलाकशुदा
और परित्यक्ता महिलाओं से करा चुका था।मगर हर जगह उम्र आड़े आ जाती।अमूमन महिलाओं
की उम्र पैंतीस चालीस की होती और रमेंद्र जी को देखकर उन्हें इसका अंदाजा लग जाता
कि भले ही वे अपनी उम्र पचपन बता रहे हैं...साठ से ऊपर के तो हैं ही.....उन औरतों
के परिवारवाले भी ऐसे रिश्ते के लिए राजी नहीं होते थे।रमेंद्र अक्सर आँख बंद करके
सोचा करते थे कि साहित्य में रुचि रखनेवाली कोई अति महत्वाकांक्षी महिला मिल जाए,जो
अपना निर्णय खुद ले सकती हो तो वह उनके प्रभाव में आकर उनसे विवाह जरूर कर
लेगी...तब संभव है जीवन में फिर से वसंत आ जाय...इसी उम्मीद में उनका जीवन गुजर
रहा था।
रमेंद्र ने कहा- फोन लगाओ,बात करो. देखो क्या कहती है।घर पर ही लाओ। दुबे ने पहला पैग खत्म करके ज्योतिषी नीलम
शर्मा को फोन लगाया-
...मैडम आपने मुझसे अपने रिश्ते के बारे में कहा
था...तो एक अच्छा रिश्ता मिल गया है आपके लिए....
डेट ऑफ बर्थ क्या है उनका....
सर अभी फिफ्टी फाइव के हो रहे हैं...
बट मैं तो
अभी फोर्टी की हूँ....15 साल का डिफरेंस है.
इतना तो चलता है मैडम....आप पहले एक बार मिलिए तो
उनसे ।सर हिंदी के जाने माने लेखक हैं।कई पुरस्कार मिल चुके हैं उनको। अभिधा
प्रकाशन के मालिक हैं।जीवनसाथी न सही मित्र के रूप में आपके लिए एक उपलब्धि की तरह
होंगे।
ठीक है मिलवाइये किसी दिन....
किसी और दिन क्या..कल ही आता हूं सर की कार लेकर
....डिनर आपको यहीं करना रहेगा।
...और दूसरे दिन महेश दुबे ज्योतिषी नीलम शर्मा
को लेकर उनके घर हाजिर था।
रमेंद्र जी ने शायराना अंदाज में नीलम का स्वागत
किया-
वो आए हमारे घर खुदा की कुदरत,कभी हम उनको,कभी
अपने घर को देखते हैं.....
नीलम को अपने पत्ते इतने जल्द नहीं खोलने थे...वह
किसी ब्यूरोक्रेट की तरह नपा तुला मुस्कुराहट चेहरे पर बिखेरकर पहले की तरह गंभीर
हो गई।रमेंद्र का बड़ा घर,टीवी,फ्रिज,वॉशिंग मशीन,फैक्स,आइपैड,लैपटॉप और सुख
सुविधाओं के ढ़ेरों दूसरे साजो सामान देखकर नीलम की नीयत डोल गई।उसने मन ही मन
सोचा ...कुछ दिनों के लिए बुड्ढ़े को झेल लेने में कोई हर्ज नहीं है।रात दिन एक
करके पैसे कमाने से बेहतर है कि इस ठरकी बुड्ढ़े से शादी करके उसके दौलत पर जितना
हो सके हाथ साफ कर लिया जाय।इसके बाद वह अपना बड़ा ज्योतिष कार्यालय खोलेगी...फिर
तो रोज बड़े लोगों से मिलना होगा।अभी छोटी जगह होने की वजह से उसके पास छोटे लोग
ही आते हैं।
परिचय का दौर शुरू हुआ।रमेंद्र अपनी पत्नी से हुए
बेटों की बात साफ छुपा गए।कह दिया कि पत्नी को कैंसर हो गया था,उन्होंने उनकी काफी
सेवा शुश्रुषा की,बड़े बड़े अस्पतालों में इलाज कराया लेकिन ठीक नहीं हो सकीं।चार
साल पहले चल बसीं ।न तो उन्हें वैवाहिक सुख दे पाईं,न ही संतान सुख।
नीलम शर्मा भी अपनी यह सच्चाई कैसे बताती कि अपने
जबलपुर प्रवास में एक ज्योतिषी ने उसे ऐसे ऐसे ख्वाब दिखाए कि उसके साथ भागकर
दिल्ली आ गई।ज्योतिषी ने दिल्ली में उसे एक किराये का फ्लैट देकर अलग रखा और ऑफिस
में बतौर रिसेप्शनिस्ट रख लिया। पूरी
सावधानी बरती गई कि पत्नी को कानोकान खबर न हो लेकिन ऐसी बातें देर तक कहाँ छुपी
रह पाती हैं।साल बीतते बीतते ज्योतिषी की पत्नी को यह बात पता चल गई।ऑफिस में काम
करनेवाले चपरासी दिनेश के हाथ मे गंगाजली पकड़ाकर जब उसने सच्चाई जाननी चाही तो
जन्म से धर्म कर्म में विश्वास रखनेवाले दिनेश ने सब कुछ उगल दिया।फिर क्या था
ज्योतिषी जी की पत्नी अगले ही दिन अपने दो तीन पड़ोसी महिलाओं को साथ लेकर ऑफिस
में पहुँच गई।पत्नी का रौद्र रूप और गालियाँ सुनकर ज्योतिषी जी मारे डर के भीतर से
बाथरूम का दरवाजा बंद करके खुद अपने ही कमरे में नजरबंद हो गए।अब पतिदेव पर आया
गुस्सा भी मैडम को नीलम पर ही निकालना था। मैडम ने गालियाँ बकते हुए नीलम पर लात
और घूसों की बरसात शुरू कर दी।तमाचे जड़ते हुए बाल पकड़ कर घसीटते हुए बाहर ले गयीं
और चिल्लाते हुए कहा ....स्साली आगे से इधर दिखी तो गैंगरेप करवा दूँगी।
इस महाभारत
के बाद नीलम ने ज्योतिषाचार्य से दूर रहने में ही अपनी भलाई समझी और एक दोस्त की
मदद से अपना एक छोटा सा ऑफिस खोल लिया।इस कड़वी स्मृति को दरकिनार करते हुए नीलम
ने रमेंद्र को सुनाने के लिए नई कहानी गढ़ी- पाँच साल पहले एक ट्रेन दुर्घटना में मेरे
मम्मी पापा नहीं रहे।मैं मम्मी पापा की अकेली संतान थी।चाचा ने मेरी शादी एक
मनोविक्षिप्त लड़के से कर दी।जब मैंने ससुराल से लौटकर उनसे यह बात कही तो कहने
लगे कि निर्वाह करो,अब वही घर तुम्हारा अपना है।मैं भागकर अपनी एक सहेली के पास
दिल्ली चली आई।बच्चों का ट्यूशन लेते हुए ज्योतिष में डिग्री ली।सच बताऊँ तो ज्योतिष ने मुझे बचा लिया...वर्ना मैं कबका मर
चुकी होती।अपना सारा समय इसी को देती चली गई।अब तक कोई मन का मिला ही नहीं जिससे शादी
के बारे में सोचूँ।आप इतने बड़े लेखक हैं,क्या मेरे साथ रह पाएंगे?मैं तो ज्योतिष के अलावा कुछ जानती ही नहीं।नीलम
शर्मा ने बड़े भोलेपन से अपने बारे में उनका नजरिया जानने के लिए पूछा।
अरे यह क्या बात हुई...मैं क्या शास्त्रार्थ करने
के लिए शादी कर रहा हूँ...
मैंने तो यह सुना है कि कवि लेखक अपनी रूचि की
लड़कियों के साथ ही रहना पसंद करते हैं...
वे और लोग होंगे....मैं उन लोगों में से
नहीं....आप निश्चिंत रहें....रमेंद्र किसी भी तरह बाजी हाथ से जाने देना नहीं
चाहते थे...
यह आप आप क्या लगा रखा है आपने...क्या शादी के
बाद भी मुझे आप ही कहते रहेंगे....
आपकी जैसी मर्जी....
आप मुझे सिर्फ नीलम कहेंगे....
चलो ठीक है.....रमेंद्र ने मुस्कुराकर कहा।
कुछ अन्य औपचारिक बातों के बाद यह तय हो गया कि
कुछ खास मित्रों की उपस्थिति में किसी मंदिर में सादगीपूर्वक वे विवाह बंधन में
बँध जाएँगे।ऐसा ही हुआ।विवाह के पश्चात रमेंद्र हनीमून के लिए हरिद्वार गए।उन्हें तीर्थ
और हनीमून दोनों के लिए यह सबसे उचित शहर लगता है।उन्होंने वहाँ बाकायदा दस दिन
गुजारे और आसपास के दर्शनीय स्थलों का भ्रमण किया।यहीं अंतरंग क्षणों में जब नीलम
ने उनसे कहा कि ऑफिस छोटा होने की वजह से छोटे तबके
के लोग ही आते हैं।अगर वे उन्हें बड़ा ऑफिस दिला दें तो बड़े लोग भी आने लग जाएँगें
और आमदनी कई गुना बढ़ जाएगी तो रमेंद्र ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।बोले- अब
तुम्हारी प्रतिष्ठा के साथ मेरी प्रतिष्ठा भी जुड़ी है।यहाँ से चलकर पहला काम यही
करेंगे।रमेंद्र ने दिल्ली पहुँचते ही अपने एक परिचित एजेंट को फोन किया और उसके
मार्फत 30 लाख रुपये में एक फ्लैट खरीदकर उसमें 5 लाख रुपये इंटीरीयर डेकोरेसन पर
खर्च किये और इस तरह नीलम शर्मा का शानदार नया ज्योतिष कार्यालय खुल गया।नीलम का
विश्वास जीतने और अपनी बेइंतहा मोहब्बत का इजहार करने के लिए रमेंद्र ने सारे
कागजात उसी के नाम बनवाए,यह कहते हुए कि मेरी ज़िंदगी का क्या भरोसा .....कल को
तुम्हें कोई परेशानी न होने पाए,इसलिए यह जरूरी है।
नीलम ने ऑफिस में एक
रसेप्शनिस्ट रख लिया, साथ ही एक जौहरी भी जो उसके ग्राहकों को हीरा,पन्ना,नीलम,पुखराज
आदि बेचता था।नीलम का इसमें तीस प्रतिशत कमीशन होता था।वह अपने ग्राहकों को रत्न
के असली होने का भरोसा देकर वहीं से खरीदने की सलाह देती।ग्राहकों द्वारा नीलम की
बात टालने का सवाल ही नहीं था।उसने ऑफिस के बाहर बड़े बोर्ड पर अपना नाम और मिलने
का समय लिखवा कर टँगवा दिया,साथ ही यह हिदायत भी कि टेलीफोन पर बगैर एप्वाइंटमेंट
लिए न आएँ।ऊँची दुकान देखकर अफसर,नेता,मंत्री,व्यापारी सब आने लगे।नीलम सबको
मुरादें पूरी होने के लिए तरह तरह के टोटके,तंत्र-मंत्र,रत्न से लेकर कर्मकाण्ड तक
के उपाय बताने लगी।कुछ अमीर ग्राहकों को वह घर पर भी बुलाने लगी।इस बारे में उसने
रमेंद्र से कभी कोई मशवरा नहीं किया ।उन्हें बहुत बुरा लगा ...कम से कम एक बार पूछ
तो लेती....पत्नी है तो क्या हुआ,आखिर गृहस्वामी हैं वे.... उन्होंने किसी तरह इसे
नजरअंदाज किया लेकिन जब घर पर आने जाने वालों की संख्या लगातार बढ़ने लगी और नीलम
आगत अतिथियों के साथ देर तक बंद कमरे में बैठकें करने लगी तो रमेंद्र से रहा नहीं
गया।रमेंद्र ने एक रात शराब पीकर उसे खूब खरी खोटी सुनाई।नीलम इसी मौके की ताक में
थी....उसका मकसद पूरा हो चुका था।अब यहाँ रहने का कोई मतलब नहीं था ।उसने अटैची
उठायी और तत्काल घर छोड़ दिया।रमेंद्र को लगा था कि गुस्सा शांत होने के बाद दो
तीन दिन में लौटकर उनके पास आ जाएगी लेकिन जब एक हफ्ते से अधिक गुजर गए तो
उन्होंने उसके मोबाइल पर फोन किया।पहले तो उसने तीन चार बार उनका फोन काट दिया
लेकिन जब वे लगातार फोन करते रहे तो उसने फोन पर उन्हें बहुत बुरा भला कहा। नीलम
लौट आए, इस चक्कर में रमेंद्र ने अपने किए पर शर्मिंदगी और पछतावा भी जाहिर किया
लेकिन सब कुछ बेअसर रहा।उसने उन्हें यहाँ तक धमकी दे डाली कि अगर उन्होंने उसे
ज्यादा परेशान किया तो वह पुलिस में जाकर उनके खिलाफ उत्पीड़न का केस दर्ज कराएगी,जिसमें
उन्हें जेल निश्चित है।रमेंद्र को अब समझ में आया कि नीलम ने अपना स्वार्थ साधने
के लिए उनसे शादी का नाटक किया था।उन्होंने उसका इतिहास भूगोल जाने बगैर उससे शादी
करके बहुत बड़ी गलती की... लेकिन अब पछताए होत क्या,जब चिड़िया चुग गई
खेत.....रमेंद्र इस सदमे से उबर नहीं पा रहे थे।
समय बीतता रहा।एक साल बाद एक साहित्यिक कार्यक्रम
में उनकी मुलाकात एक अखबार में उनकी सहयोगी रह चुकी ऋचा अग्निहोत्री से हुई।वह
बड़े गर्मजोशी से उनसे गले मिली।कार्यक्रम खत्म होने के बाद दोनों अपने पुराने
अड्डे प्रेस क्लब में जाकर बैठ गए।इतने दिन से कहाँ थी ...पूछने पर ऋचा ने बताया
कि वह पिछले दस सालों से मुंबई से प्रकाशित हो रहे एक दैनिक अखबार में काम कर रही
थी,लेकिन मालिक की मृत्यु होने के बाद उसके बेटों ने अखबार बंद कर दिया तो उसे
वापस दिल्ली आना पड़ा। मुंबई में हिंदी के बहुत कम अखबार हैं,वहाँ सेटल हो पाने की
गुंजायश नहीं थी।
यहाँ कहीं बात बनी...
हाँ,एक हफ्ते से एक मासिक पत्रिका ज्वायन किया
है....ऐसा लगता है कि यहाँ जम जाऊँगी।
और अभी शादी वादी की या नहीं....
कहाँ कर पाई सर.... पापा किसी परमानेंट जॉब में
थे नहीं... लकवा लगने के बाद जो थोड़ा बहुत कमा पाते थे,वह भी खत्म हो गया।उनकी
दवाई, दो छोटी बहनों की शादी और भाई के पढ़ाई की जिम्मेवारी मुझ पर ही थी ....अभी
चालीस की हो गई हूँ मैं....कौन करेगा मुझसे शादी....पुनर्विवाह के लिए बुड्ढ़े भी
20-25 साल की लड़कियाँ खोजते हैं।
तुम किस उम्र का ढ़ूँढ़ रही हो...रमेंद्र ने
मुस्कुराते हुए पूछा।
मुझे मेरी उम्र का ही मिले ऐसा नहीं
सोचती....पहले मन तो मिले,उम्र का क्या है,वह तो सेकेंडरी चीज है।
मुझसे करोगी शादी ...रमेंद्र ने मुस्कुराते हुए
पूछा।
अरे सर....कहाँ आप और कहाँ हम.....मुझे अपनी
हैसियत का पता है....
मन हैसियत देखकर तो नहीं मिलता.....रमेंद्र ने
कहा।
हाँ यह तो है.....ऋचा ने हामी भरी।
क्या आप वाकई सीरियस हैं....?
हाँ....मजाक थोड़े ही कर रहा हूँ....
ठीक है...और थोड़े समय आप भी सोच लीजिए....मैं भी
सोच लेती हूँ...
बिल्कुल ....जल्दबाजी जैसी कोई बाततो है नहीं....
रमेंद्र को याद आया- यह वही ऋचा थी जिसका पूरा ऑफिस दीवाना हुआ
करता था...क्या तीखे नैन नक्श थे,सादगी में रहने पर भी उसका यौवन बिजली की तरह कहर
बरपाता था।जवानी भला कब शृंगार की मुँहताज रही है....इन दस सालों में ही उसका यौवन
ढ़ल गया,ऐसा नहीं था,मगर चेहरे से उम्र झलकने लगी थी।रमेंद्र सोच रहे थे कि
लड़कियों पर जवानी और बुढ़ापा दोनों ही जल्दी आ जाते हैं....छिपाए नहीं
छिपते।बुढ़ापे में उन्हें एक हमसफर की तलाश थी।वे सोच रहे थे कि अगर ऋचा उन्हें
हाँ बोल दे तो बाकी उम्र बड़े आराम से कट जाएगी।उससे अच्छी लड़की मिलने से रही।ऋचा
और रमेंद्र एक दूसरे से मिलते रहे और उन्होंने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया कि वे
शादी नहीं करेंगे बल्कि लिव इन में रहेंगे ताकि अगर कोई मिसअंडरस्टैंडिंग होती है
तो वे आराम से उस पर बात करके सही निर्णय ले सकें।ऋचा रोज शाम को सात बजे तक घर
लौट आती।रमेंद्र इस समय बाहर होते।वे करीब नौ बजे घर आते और दोनों खाते पीते बारह
बजे तक सोते।सुबह नौ बजे खाना बनाकर ऋचा ऑफिस चली जाती।ऋचा का एक सहकर्मी रंजन
कुमार अपने बाइक से उसी रस्ते से होकर जाता था जिधर रमेंद्र का घर था।साथ काम करते
हुए रंजन को ऋचा ने यह बात बता दी थी कि वह रमेंद्र के साथ लिव इन में रहने लगी
है।पहले दोनों के रस्ते अलग थे,लेकिन अब रमेंद्र ने ऋचा को अपने बाइक से ऑफिस के
लिए पिक अप करना शुरू कर दिया।ऋचा ने मना किया कि वह चला जाया करे,वह खुद आ जाया
करेगी लेकिन रंजन ने उसकी बात नहीं मानी।
जब एक ही इलाके से आ रहे हैं तो साथ आने में क्या
बुराई है...उसके साथ जाने में ऋचा को भी अच्छा लगता।रंजन उम्र में उससे दस साल
छोटा था,लेकिन उसका अध्ययन और चिंतन कमाल का था।इसीलिए बहुत कम समय में वह सहायक
संपादक हो गया था।प्रधान संपादक के रूप में मालिक का नाम जाता था लेकिन सारा काम
वही करता था।लौटते समय ऋचा रोज उससे घर से चाय पीकर जाने के लिए कहती लेकिन वह
ब्यस्तता का रोना रोते हुए रोज उसे नियत स्थान पर छोड़कर घर चला जाता।एक दिन ऋचा
जिद पर अड़ गई कि अगर वह उसके घर नहीं चलेगा तो कल से उसके बाइक से ऑफिस नहीं
जाएगी।रंजन इस जिद के आगे झुक गया।फिर तो यह रोज का सिलसिला बन गया।रंजन उसके घर
से चाय पीकर ही लौटता।स्त्री पुरुष अगर एकांत में हों तो वासना चुपचाप चली आती है,इसीलिए
संतों ने पुत्री और बहन के साथ भी एकांत में मिलने से
मना किया है।
एकांत में मिलते हुए ऋचा और रंजन भी एक दूसरे के आकर्षण में आने से
बचे नहीं रह सके।दोनों मिलकर एक होने लगे।ऋचा जानती थी कि कभी न कभी रमेंद्र को इस
रिश्ते का पता चल ही जाएगा लेकिन तन मन का यह सुख उस डर को दबा देता।रमेंद्र उसे
यह सुख दे पाते तो शायद वह इस रिश्ते से निकल भी जाती लेकिन उसे मालूम था कि
रमेंद्र चाहकर भी अब उस लायक नहीं बन सकते ।जो होगा सो होगा....सोचते हुए दिन
निकलते जा रहे थे।आखिर वह दिन आ ही गया।रमेंद्र उस दिन सिर में दर्द होने की वजह
से जल्दी घर लौट आए।जब उन्होंने घर की कॉलबेल बजायी तो ऋचा और रंजन एक दूसरे को
प्यार करने में लगे थे।ऋचा ने समझा कोई और होगा....वैसे ही नाइटी पहने हुए बिखरे
बालों के साथ उसने दरवाजा खोल दिया,जब सामने रमेंद्र को देखा तो भौंचक्का रह गई।चेहरे
की उड़ी हुई रंगत और एक अपरिचित व्यक्ति के सामने ऋचा को इस ड्रेस में देखकर
रमेंद्र को सारा माजरा समझने में देर नहीं लगी।रंजन के चेहरे पर भी हवाइयाँ उड़
रही थीं।तीनों जड़वत हो गए।ऋचा ने खामोशी तोड़ते हुए कहा- ये रंजन सर हैं,हमारी
मैगजीन के असिस्टेंट एडीटर।रमेंद्र कुछ नहीं बोले,सीधे अपने कमरे में जाकर सो
गए।उनके मन में बार बार यह खयाल आ रहा था कि अगर पुरुष और स्त्री के उम्र में
ज्यादे फासला हो तो क्या यही अभिशाप झेलना पड़ता है?क्या
करें ऋचा को घर से निकालकर फिर अकेले हो जाएँ या कि सब कुछ जानबूझकर आँखें मूँदे
रहें।बेटे तो विदेश से आने से रहे,फिर बाकी उम्र के लिए कौन बनेगा उनका सहारा...?क्या उन्हें फिर से तीसरी औरत की तलाश में लग
जाना चाहिए ?
Email- anushkamagazine@gmail.com mobile- 8286442491/9220270437