कहानी
शार्टकट
रासबिहारी पाण्डेय
आज एक कार्यक्रम में एक साल बाद मोहिनी से मुलाकात हुई है। परिचय तो पाँच वर्ष पुराना है पर मुलाकातें बहुत कम थीं उससे। वह जब भी मिलती,
बड़े ख़ुलूस और अपनेपन के साथ। देखते ही बोली- चलिए सर, आज मैं आप को लिफ्ट दे
देती हूंl यह काम तो हम पुरुषों का है। महिलाएं इस
क्षेत्र में भी अतिक्रमण करने लगीं। मैंने मुस्कुराते हुए कहा तो उसने बड़े रोबीले
अंदाज में कहा- आज महिलाएं किस क्षेत्र में पुरुषों से पीछे रह गई हैं। हर क्षेत्र
में टक्कर दे रही हैं।अगर पुरुषों से लिफ्ट ले सकती हैं, तो दे क्यों नहीं सकतीं.....
कहते हुए वह अपनी कार की ड्राइविंग सीट पर बैठ गई। मंत्र विद्ध मैं भी उसके बगल
में जा बैठा। ट्रैफिक की शोर की वजह से मैं खामोश बैठा था। उससे रहा नहीं गया।
बोली -आप संकोची बहुत हैं, यह काम तो हम महिलाओं का है, इस क्षेत्र में भी
अतिक्रमण....! संकोची
नहीं गंभीर कहो.. मैं हंस पड़ा।
चार कहानी-संग्रह आ चुके हैं
आपके.... कहानियां ही लिखते रहेंगे, उपन्यास की ओर जाने का इरादा नहीं है?
लिख तो रहा हूं ...देखो कब तक पूरा होता है।
अच्छा यह बात है.... काम
शुरू है.... अग्रिम बधाई...... और बताइए आपके बीवी बच्चे कैसे हैं? आपने कभी मिलवाया नहीं। किसी दिन
उन्हें लेकर घर आइए।
तुम्हारा आमंत्रण सर आंखों पर ....वैसे किसी दिन अपने पतिदेव के साथ तुम भी हमारे गरीबखाने पर आ सकती हो।
हमारे पतिदेव तो बस नाम के पतिदेव
हैं। उनको तो अपने काम से फुर्सत ही नहीं रहती।
बीवी के लिए भी फुर्सत नहीं
रहती?
एक बीवी हो तो फुर्सत निकालें
......इतना खुला जवाब सुनकर में चौंका। क्या दो शादियां कर रखी हैं ?
अरे सर....बीवी का सुख पाने के लिए शादी करना जरूरी है क्या? मेरे पतिदेव एक मल्टीनेशनल कंपनी में
हैं। साल का तीस लाख का पैकेज है। मुंबई से बाहर जाते रहते हैं। इसलिए बाहर सारी
व्यवस्था भी रखते हैं।
तो क्या कई महिलाओं से संबंध है उनके?
हां दो को तो मैं
खुद जानती हूं । कभी विरोध नहीं किया आपने।
विरोध करके कितनी बार पिटूँ? कहते हुए उसने कुछ जख्मों के निशान दिखाए और कहा- अंदरूनी जख्म
कैसे दिखाऊं जो बदन ही नहीं मन पर भी लगे हैं। घर के लोग कहते हैं कि चाहे कुछ भी
करता है। पत्नी के रूप में तो तुम ही जानी जाती हो...
...तो क्या तुमको बिल्कुल समय नहीं देते? रात को दो बजे तक सिर्फ सोने के लिए घर
आते हैं। जब कभी अपना मन हुआ तो देह से खेल लेते हैं, वरना फिर सुबह ऑफिस के लिए
रवाना हो जाते हैं।मैं भी ग्यारह बजते बजते कॉलेज के लिए निकल जाती हूँ।
लौटते-लौटते छह बज जाते
हैं। घर आकर थोड़ा आराम करती हूं,फिर टीवी के सीरियल और न्यूज़ चैनलों में खो जाती हूं।
एक बच्चा भी है न तुम्हें....
उसे तो हॉस्टल में डाल दिया।
जब तक वह था, मन बहल जाता था। अब तो कभी-कभी बहुत डिप्रेशन होता है।
तुम तो कार्यक्रमों में भी आती जाती रहती हो...
बहुत कम जगहों पर जा पाती हूं। परिचय बहुत कम लोगों से है। घर चलिए।
एक कप चाय पीकर निकल जाइएगा...
अभी हमलोगों ने कार्यक्रम में चाय पी तो थी। तलब महसूस नहीं हो रही
है। किसी और दिन आता हूं...
छोड़िए भी मेरे हाथ की बनी चाय नहीं पीना चाहेंगे.....
लोग मुझसे फोन करके पूछते हैं कि आपके यहां चाय पीने कब आएं और आप
हैं कि सामने से ऑफर ठुकरा रहे हैं! आधे घंटे में क्या बनने बिगड़ने वाला है।
उसके इसरार के आगे मुझे
झुकना पड़ा। उसने कार पार्किंग में खड़ी कर दी। घर आकर देखता हूं तो
पत्र-पत्रिकाओं किताबों के साथ ढेर सारे ऑडियो वीडियो सीडी कैसेट... बड़े सलीके से रखा म्यूजिक सिस्टम... होम थिएटर, पलंग,
टेबल ,फर्नीचर,सब कुछ बहुत सुव्यवस्थित.... कहीं से ऐसा नहीं लगा कि यह किसी उदास
और हताश मन वाली औरत का बसेरा होगा। फ्रीज से ठंडा पानी और बिस्किट देने के बाद वह
किचन में घुसी और बहुत जल्द चाय टेबल पर रखी हुई थी।वह एक बार फिर उदास होते हुए
बोली- सौभाग्यशाली हैं आप ! घर जाते ही बीवी, बच्चों से घुल मिल जाएंगे। उदासी का कोई
नामोनिशान नहीं होगा। पता नहीं मैंने पिछले जन्म में कौन से पाप किए थे, जिसकी सजा
इस जन्म में भुगतनी पड़ रही है।
अरे अच्छा घर, अच्छी नौकरी, अमीर पति, सब तो हैं ....और किस चीज की तलाश है तुम्हें?
घर, नौकरी और
पति का होना ही सुख की गारंटी होता तो हर रोज सैकड़ों तलाक नहीं होते। जीवन में
सबसे जरूरी है मन का सुकून और सुकून के लिए चाहिए किसी का प्यार... किसी का अपनापन....
जीने का कोई मकसद....
तुम तो किसी मँजी हुई लेखिका की तरह बातें कर रही हो.... लिखने की
शुरुआत क्यों नहीं करती? मन जरा कहीं ठहरे तो फिर से लिखना शुरू करूं... पहले का तो
बहुत सारा लिखा हुआ पड़ा है, मगर ठिकाने से रहे तो कुछ करूं। जीवन का खालीपन किसी
स्वीट प्वाइजन की तरह होता है। धीरे-धीरे मौत की तरफ ले जाता है।
अगर इतना परेशान हो तो तलाक क्यों नहीं ले लेतीं।
तलाक लेने से पहले कोई दूसरा विकल्प तो होना चाहिए.... इतनी बड़ी
जिंदगी अकेले तो नहीं काटी जा सकती और फिर इस उम्र में दूसरा कौन मिलेगा मुझे?
दुनिया में सिर्फ पुरुषों से प्रताड़ित होने वाली महिलाएं ही नहीं
हैं, महिलाओं
से प्रताड़ित पुरुष भी हैं। तलाश करो ...कोई मिल ही जाएगा।
देखिए किस्मत में क्या लिखा है।
वह रुआंसा हो गई।मैं बड़े भारी मन से घर लौटा।उससे काफी सहानुभूति हो
रही थी। उसके पति के पति के प्रति क्षोभ से मन भर गया। मैंने निश्चय किया- जितना
संभव हुआ उसकी मदद करूंगा। अब फोन पर उससे लंबी बातें होने लगी थीं। कई पत्रकारों,
सामाजिक कार्यकर्ताओं और कवि लेखकों से मैंने उसे मिलवाया। कई संस्थाओं ने मेरे
आग्रह पर अपने कार्यक्रमों में भी उसे निमंत्रित किया, हालांकि उसका परचा भी मुझे
ही लिखना पड़ता। मेहनत से वह दूर भागती थी। उसकी रुझान सिद्ध होने से कहीं अधिक
प्रसिद्ध होने में थी। उसके परिचय का दायरा बढ़ता गया। साल बीतते बीतते उसने मुझसे
अपनी उदासी और हताशा का जिक्र करना बंद कर दिया। मुझे खुशी हो रही थी कि मैं उसके
कुछ काम आ पाया।अपनी अन्य व्यस्तताओं की वजह से अब मैं उसे समय नहीं दे पा रहा था। नए संपर्कों को प्रगाढ़ करने के क्रम में धीरे-धीरे वह वह भी मुझसे कटने लगी और
अपनी तरफ से फोन करना बंद कर दिया। इस बीच कई बार समय तय करके भी वह घर नहीं आई। मगर
मेरे माध्यम से कोई अवसर मिलना होता तो जरूर मिलती या किसी विषय पर कोई रेफरेंस
चाहिए होता तो फोन पर लंबी बात भी कर लेती लेकिन बिना वजह मिलने-जुलने या बात करने
में उसकी कोई रुचि नहीं रह गई थी।पहले जो अपनापन दिखाने का भाव था,वह कपूर की तरह
उड़ गया था।
अचानक उसमें आए इस परिवर्तन से मैं चकित था।जब कभी मैं उससे इस बारे
में पूछता तो उसका जवाब होता कॉलेज में कुछ नई जिम्मेदारियां बढ़ गई हैं, इसलिए
बहुत बिजी हो गई हूँ।मैं कहीं भी आ जा नहीं पा रही हूं।हालांकि मुझे औरों से पता
चलता रहता था कि कल वहां थी, परसो वहां थी, अगले महीने की इन इन तारीखों में वह
शहर से बाहर जा रही है।
उसे प्रोमोट करने में कई लोग लगे थे। एक ठीक-ठाक दायरा बना लिया था उसने। पत्रकारों को खाने पर घर बुलाकर वह गिफ्ट प्रेजेंट करने लगी थी।बदले में वे लोग रिपोर्टिंग में उसके नाम के साथ वक्तव्य की तीन चार पंक्तियां भी देने लगे थे। कार्यक्रमों में आते जाते एक अधेड़ उम्र का पूंजीपति उस पर बुरी तरह फिदा हो गया था। लौटते वक्त वह अक्सर अपनी कार में कुछ लोगों को लिफ्ट दिया करता था। इसी क्रम में मोहिनी के रूप और यौवन पर कुछ इस तरह फिदा हुआ कि अपनी ही गाड़ी में उसका ड्राइवर बन बैठा। अब मोहिनी को अपनी कार निकालने की जरूरत नहीं पड़ती थी। मामा भानजी का बड़ा महफूज सा रिश्ता भी गाँठ लिया था दोनों ने.... मेरे मित्र इस जोड़ी के बारे में खुलकर बातें करते.. फिर कहते आपने बहुत संभावनाशील बनाकर प्रस्तुत किया था, अब देखिए उसका विकास...सबका साथ सबका विकास....हा हा हा...
मैं जिसे शोषित और पीड़ित समझ रहा था,उसका यह रुप देख कर हैरान था।एक दिन ऐसा संयोग बना कि मोहिनी और मैं दोनों ही एक सेमिनार में
साथ थे। कार्यक्रम खत्म होने से पहले ही वह मामाजी के साथ छूमंतर हो गई। कार्यक्रम
की समाप्ति के बाद उसके कॉलेज के नवनियुक्त एक लेक्चरर महोदय मुझे बधाई देने के
लिए मिले। उनसे दो मर्तबा पहले भी मुलाकात हो चुकी थी। उन्होंने अपनी गाड़ी में
चलने का प्रस्ताव रखा तो मैं मना नहीं कर सका। रास्ते में कार्यक्रम की चर्चा शुरू
हुई तो मैंने कहा - मोहिनी ने भी अच्छा परचा पढ़ा। उन्होंने मेरी तरफ ऐसे देखा
जैसे कह रहे हों कि किसका नाम ले लिया आपने लेकिन जो कानों से सुना वो यह था कि
लगता है मोहिनी के बारे में आप बहुत कम जानते हैं। यह परचा उसका लिखा हुआ नहीं था।
यह तो मिस्टर त्रिपाठी ने लिखा था उसके लिए। आजकल उसके परचे वही लिखा करते हैं।
बदले में कभी कभार उनके साथ फिल्म देखने चली जाती है।मोहिनी जैसा अवसरवादी आपको
ढूंढने से भी नहीं मिलेगा।हमेशा अपने औरत होने का फायदा उठाने की ताक में रहती है।
पहले एक प्रोफेसर साहब को फंसाकर कॉलेज में नौकरी ली,फिर कॉलेज के ट्रस्टी को
फँसाकर नौकरी को स्थायी करवाया।फिर एक बिल्डर को फँसाया ,उससे बहुत कम पैसों में
एक फ्लैट लिया और अब परिचितों के बीच में हुई बदनामी की भरपाई साहित्य की दुनिया
में नाम कमाकर करना चाहती है।
पर उसके पति तो बहुत अमीर हैं .... किसी मल्टीनेशनल कंपनी में....
किसने कह दिया आपसे.... वह
तो एक प्राइवेट फॉर्म में क्लर्क है। मोहिनी जब तक कॉलेज में नहीं थी और किराए के
मकान में थी, मजबूरन साथ रहा करती थी। जैसे ही उसने अपना मकान खरीदा, पति को दूध
की मक्खी की तरह निकाल फेंका।
लेकिन मैंने तो सुना कि वे उसकी उपेक्षा और मारपीट करते थे...
अपने प्रति सहानुभूति बटोरने के लिए यह कहानी वह हर नए आदमी को
सुनाती है कि.... उसका पति शराबी है,व्यभिचारी है... अत्याचारी है, जबकि असल बात
यह है कि इसने उसका जीवन नर्क बना दिया है। पैंतालीस की उम्र में उसकी शादी तो होने से रही। इसको तो खैर छत्तीस मिल रहे हैं। नारी तो काठ की भी हो तो पुरुष खड़ा
होकर एक नजर देखता है।
यह सब आपको कैसे पता....
हमारे कॉलेज में तो हरेक को इसकी कहानी पता है ,किसी से पूछ
लीजिए.... यह सब सुनकर मेरी आंखें फटी रह गईं।कानों को बिल्कुल विश्वास नहीं हो
रहा था कि मोहिनी ऐसा हो सकती है।
इत्तफाकन एक दिन चर्चगेट स्टेशन पर मेरे साथ एमए में पढ़ने वाली मेरी
दोस्त निर्मला मिल गई। तय हुआ कि नरीमन पॉइंट समुद्र तट पर कुछ देर बैठा जाए।
थोड़ी
देर बाद क्या देखता हूं कि मोहिनी के गले में हाथ डाले उसके तथाकथित मामा जी चले आ
रहे हैं। मोहिनी किसी बात पर हंसती जा रही है और मामाजी उसके गालों पर हल्की चपत
लगाए जा रहे हैं। दोनों के नखरे बिल्कुल किशोर उम्र की प्रेमी-प्रेमिकाओं जैसे...
हमारे बीच फासला इतना कम रह गया था कि न तो वह अपना रास्ता बदल सकती थी न ही मैं
किसी दूसरी तरफ मुड़ सकता था। न चाहकर भी आंखें चार हो गईं। मुझे देखकर एक पल को वह
अचकचाई लेकिन दूसरे ही पल सामान्य हो गई और इस अंदाज में आगे बढ़ गई जैसे मुझे
जानती ही न हो। मुझे काटो तो खून नहीं। ऐसी कितनी जगहें जहां वह सिर्फ और सिर्फ
मेरे कारण पहुंच पाई, जिसके लिए मैंने कितने परचे लिखे,दोस्तों और परिवार को दिया जानेवाला
समय जिसे दिया,अपने काम अधूरे छोड़कर जिसके लिए कहीं और गया.... उसने मुझे पहचाना तक
नहीं। मैं अपने आपको बहुत अपमानित महसूस कर रहा था।
निर्मला ने तंज किया- ऐसे क्या देख रहे हैं... इसे पहचानते हैं क्या....?
क्या तुम इसको जानती हो ?
हां खूब जानती हूं.... मुझसे एक साल जूनियर थी इस्माइल युसूफ कॉलेज में।
माँ सीधी साधी अनपढ़.... बाप ऑटो चलाता है।बेटी ने बिना कोई योग्यता हासिल किए
बड़े-बड़े सपने पाल लिए। जब बीए कर रही थी, उसी समय एक फिल्म को ऑर्डिनेटर ने
हीरोइन बनाने का झांसा देकर खूब घुमाया,मगर जब प्रेग्नेंट हो गई तो वह किराए का
कमरा छोड़कर रफू चक्कर हो गया। इसने बहुतेरे प्रोड्यूसर डायरेक्टरों के चक्कर लगाए।छह सात साल स्ट्रगल किया।कितनों से प्यार का
नाटक किया और कइयों ने इससे प्यार का नाटक किया। लेकिन नाटक तो एक समय बाद खत्म ही
हो जाता है। शादी के लिए तैयार ही नहीं हो रही थी। इससे दो छोटे भाई बहन और थे। उनका
हवाला देकर मां बाप ने किसी तरह हाथ पैर जोड़कर राजी किया और एक क्लर्क से शादी कर दी। स्वच्छंद
विचरण करने वाली परम महत्वाकांक्षी मोहिनी पिंजरे में कैद होकर कहां रहने वाली थी।
बहुत जल्द घर में महाभारत होने लगा। बार-बार भागकर मायके चली आती थी।जब मां बाप ने
भी दुत्कारना शुरू किया तो नौकरी करने की ठानी। इसके एक पुराने आशिक एक कॉलेज में
थे।उन्होंने वहां कैजुअल लगवा दिया। वहां लगने के बाद उसने ट्रस्टी के साथ चक्कर
चलाना शुरु कर दिया।जब आशिक महोदय ने ऐतराज किया और वहाँ से निकलवाने की धमकी दी
तो झूठे आरोप लगवाकर इसने उन्हें ही बाहर करवा दिया। अब महारानी आराम से वहां विराज रही
हैं।
मैं मन ही मन गुस्से से उबल
पड़ा। इतना पतित है यह।मुझसे कोई काम पड़ा तो फिर से हँसते हुए सीधे घर चली आएगी।जो
नमस्कार तक की औपचारिकता भूल गई,उससे आगे कोई संबंध क्या रखना...आज फोन पर ही इससे
रिश्ता तोड़ लूंगा मैं।
निर्मला से अलग होते ही मैंने
मोहिनी को फोन किया।मेरा फोन रिसीव करते ही परम प्रसन्न हो जाने का दिखावा करने वाली
मोहिनी आज एकदम सामान्य थी। मैंने कहा- तुम आज सामान्य शिष्टाचार भी भूल गई....वैसे
तो कितनी बड़ी बड़ी बातें करती हो......
सर अगर हर एक रिश्ते को निभाती रहती तो मैं आज यहां तक नहीं पहुंचती....
मेरी कहानी तो निर्मला ने बता ही दी होगी आपको... निर्मला पहले मिल जाती तो शायद आप
मेरी मदद न करते, मगर छोड़िए मैं जो कुछ भी कर रही हूं, उससे आपका क्या नुकसान है, आपको
क्या परेशानी है?
तुम शायद यह कभी नहीं समझोगी कि रिश्तो में सिर्फ फायदा और नुकसान
नहीं देखा जाता क्योंकि तुमने रिश्तों और भावनाओं को ही व्यापार बना रखा है।
प्यार के दो मीठे बोलों से पेट नहीं भरता सर। आपके पास और है
क्या मुझे देने के लिए... जो आप कर सकते थे कर चुके। अब मैं आपकी परवाह क्यों करूँ.... मैंने भी कभी किसी से प्यार किया था। भावनाओं में बहकर अपना तन मन सब कुछ
दे डाला था, मगर उस आदमी ने अपनी हवस की आग बुझाकर मुझे अकेला छोड़ दिया। उससे तो मैं
बदला नहीं ले सकी, मगर उसका बदला मैं हर नए मर्द से लेती हूं। मुझे मर्द जात से
नफरत हो गई है।
किसी एक ने धोखा
दे दिया तो तुमने सारी पुरुष जात को ही खारिज कर दिया। शिक्षित होकर तुमने यही
सीखा है।अगर वेश्यावृत्ति ही करनी थी तो इस पढ़ाई लिखाई का क्या मतलब है?
किस पढ़ाई-लिखाई की बात कर रहे हैं आप.... मेरे जैसे बहुत बीए,बीएड
घूम रहे
हैं।मुट्ठी गरम किए बिना कोई नौकरी नहीं मिलती आजकल।
इसीलिए तुमने बिस्तर गर्म करने का रास्ता चुना ।
बिस्तर गर्म करने से देह नहीं जल जाती सर, मगर जब भूख लगती है तो
अंतड़ियां सिकुड़ने लगती हैं। मैं जिस माहौल से निकली, अगर समझौते न करती तो
जिंदगी भर घर में बैठे टसुए बहाती रहती। आपका अगला सवाल होगा कि मैंने अपने पति को
क्यों छोड़ दिया- उसका भी जवाब सुन लीजिए। श्रीमान जी एक प्राइवेट फर्म में क्लर्क
बन कर खुश हैं, इससे आगे उन्होंने कभी कुछ सोचा ही नहीं। पूरी जिंदगी मुझे अपने
चरणों की दासी बना कर रखना चाहते थे। सिंपल हाउस वाइफ... उनके बच्चे पालूँ, उनके
रिश्तेदारों और दोस्तों को डिनर कराऊं और इसी में अपना जीवन कुर्बान कर दूं ।मुझे
नहीं करना था यह सब,छोड़ दिया इसीलिए। अगर उनके पदचिन्हों पर चलती तो यह घर, यह
गाड़ी, ये ऐशोआराम नहीं होते मेरी जिंदगी में ।आप पतिव्रता की तलाश कर रहे हैं। आज
के जमाने में एक ही पतिव्रता है- वेश्या। उसका पति सिर्फ पैसा है।मैंने जो कुछ
किया पैसों के लिए ही किया।
वेश्या शब्द तुम्हारे लिए बहुत छोटा है। वेश्या भी अपने कुछ उसूल
रखती है और जहां तक तुम वेश्या बनकर पहुंची हो,श्रम और योग्यता के सहारे भी पहुंच
सकती थी, मगर तुम्हें शॉर्टकट चाहिए था। सफलता का क्या उदाहरण पेश कर रही हो तुम....
यही कि सही रास्ते पर चलकर सफलता नहीं मिलती।अपनी क्षुद्र महत्वाकांक्षाओं की
पूर्ति के लिए तुमने अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा दांव पर लगा दी और ऐसे खुश हो रही हो
जैसे कोई बड़ा किला फतह कर लिया है ! अपने ऊपर पड़ने वाली उन निगाहों के बारे में कभी नहीं सोचा जो
तुम्हारी करतूतें जानती हैं।हर सफल औरत को लोग यूं ही नहीं देखते, जैसे तुम्हें
देखते हैं... कहते हुए मैंने फोन कट कर दिया।उसने अपनी ओर से कई बार फोन करके फिर
से बात करने की कोशिश की,मगर मैंने फोन नहीं उठाया....रहिमन बिगड़े दूध को मथे न माखन
होय।