Thursday, 28 June 2018

कहानी / शार्टकट


कहानी

शार्टकट

रासबिहारी पाण्डेय


आज एक कार्यक्रम में एक साल बाद मोहिनी से मुलाकात हुई है। परिचय तो पाँच वर्ष पुराना है पर मुलाकातें बहुत कम थीं उससे। वह जब भी मिलती, बड़े ख़ुलूस और अपनेपन के साथ। देखते ही बोली- चलिए सर, आज मैं आप को लिफ्ट दे देती हूंl यह काम तो हम पुरुषों का है। महिलाएं इस क्षेत्र में भी अतिक्रमण करने लगीं। मैंने मुस्कुराते हुए कहा तो उसने बड़े रोबीले अंदाज में कहा- आज महिलाएं किस क्षेत्र में पुरुषों से पीछे रह गई हैं। हर क्षेत्र में टक्कर दे रही हैं।अगर पुरुषों से लिफ्ट ले सकती हैं, तो दे क्यों नहीं सकतीं..... कहते हुए वह अपनी कार की ड्राइविंग सीट पर बैठ गई। मंत्र विद्ध मैं भी उसके बगल में जा बैठा। ट्रैफिक की शोर की वजह से मैं खामोश बैठा था। उससे रहा नहीं गया। बोली -आप संकोची बहुत हैं, यह काम तो हम महिलाओं का है, इस क्षेत्र में भी अतिक्रमण....! संकोची नहीं गंभीर कहो.. मैं हंस पड़ा।

 चार कहानी-संग्रह आ चुके हैं आपके.... कहानियां ही लिखते रहेंगे, उपन्यास की ओर जाने का इरादा नहीं है?
 लिख तो रहा हूं ...देखो कब तक पूरा होता है।
 अच्छा यह बात है.... काम शुरू है.... अग्रिम बधाई...... और बताइए आपके बीवी बच्चे कैसे हैं? आपने कभी मिलवाया नहीं। किसी दिन उन्हें लेकर घर आइए।
तुम्हारा आमंत्रण सर आंखों पर ....वैसे किसी दिन अपने पतिदेव के साथ तुम भी हमारे गरीबखाने पर आ सकती हो।
 हमारे पतिदेव तो बस नाम के पतिदेव हैं। उनको तो अपने काम से फुर्सत ही नहीं रहती।
 बीवी के लिए भी फुर्सत नहीं रहती?
 एक बीवी हो तो फुर्सत निकालें ......इतना खुला जवाब सुनकर में चौंका। क्या दो शादियां कर रखी हैं ?
अरे सर....बीवी का सुख पाने के लिए शादी करना जरूरी है क्या? मेरे पतिदेव एक मल्टीनेशनल कंपनी में हैं। साल का तीस लाख का पैकेज है। मुंबई से बाहर जाते रहते हैं। इसलिए बाहर सारी व्यवस्था भी रखते हैं।
तो क्या कई महिलाओं से संबंध है उनके?
 हां दो को तो मैं खुद जानती हूं कभी विरोध नहीं किया आपने। 
विरोध करके कितनी बार पिटूँ?  कहते हुए उसने कुछ जख्मों के निशान दिखाए और कहा- अंदरूनी जख्म कैसे दिखाऊं जो बदन ही नहीं मन पर भी लगे हैं। घर के लोग कहते हैं कि चाहे कुछ भी करता है। पत्नी के रूप में तो तुम ही जानी जाती हो...

...तो क्या तुमको बिल्कुल समय नहीं देते? रात को दो बजे तक सिर्फ सोने के लिए घर आते हैं। जब कभी अपना मन हुआ तो देह से खेल लेते हैं, वरना फिर सुबह ऑफिस के लिए रवाना हो जाते हैं।मैं भी ग्यारह बजते बजते कॉलेज के लिए निकल जाती हूँ। लौटते-लौटते छह बज जाते हैं। घर आकर थोड़ा आराम करती हूं,फिर टीवी के सीरियल और न्यूज़ चैनलों में खो जाती हूं।
 एक बच्चा भी है न तुम्हें....
 उसे तो हॉस्टल में डाल दिया। जब तक वह था, मन बहल जाता था। अब तो कभी-कभी बहुत डिप्रेशन होता है।
तुम तो कार्यक्रमों में भी आती जाती रहती हो...
बहुत कम जगहों पर जा पाती हूं। परिचय बहुत कम लोगों से है। घर चलिए। एक कप चाय पीकर निकल जाइएगा...
अभी हमलोगों ने कार्यक्रम में चाय पी तो थी। तलब महसूस नहीं हो रही है। किसी और दिन आता हूं...
छोड़िए भी मेरे हाथ की बनी चाय नहीं पीना चाहेंगे.....
लोग मुझसे फोन करके पूछते हैं कि आपके यहां चाय पीने कब आएं और आप हैं कि सामने से ऑफर ठुकरा रहे हैं! आधे घंटे में क्या बनने बिगड़ने वाला है।

 उसके इसरार के आगे मुझे झुकना पड़ा। उसने कार पार्किंग में खड़ी कर दी। घर आकर देखता हूं तो पत्र-पत्रिकाओं किताबों के साथ ढेर सारे ऑडियो वीडियो सीडी कैसेट... बड़े सलीके से रखा म्यूजिक सिस्टम... होम थिएटर, पलंग, टेबल ,फर्नीचर,सब कुछ बहुत सुव्यवस्थित.... कहीं से ऐसा नहीं लगा कि यह किसी उदास और हताश मन वाली औरत का बसेरा होगा। फ्रीज से ठंडा पानी और बिस्किट देने के बाद वह किचन में घुसी और बहुत जल्द चाय टेबल पर रखी हुई थी।वह एक बार फिर उदास होते हुए बोली- सौभाग्यशाली हैं आप ! घर जाते ही बीवी, बच्चों से घुल मिल जाएंगे। उदासी का कोई नामोनिशान नहीं होगा। पता नहीं मैंने पिछले जन्म में कौन से पाप किए थे, जिसकी सजा इस जन्म में भुगतनी पड़ रही है। 
अरे अच्छा घर, अच्छी नौकरी, अमीर पति, सब तो हैं  ....और किस चीज की तलाश है तुम्हें?
घर, नौकरी और पति का होना ही सुख की गारंटी होता तो हर रोज सैकड़ों तलाक नहीं होते। जीवन में सबसे जरूरी है मन का सुकून और सुकून के लिए चाहिए किसी का प्यार... किसी का अपनापन.... जीने का कोई मकसद....
तुम तो किसी मँजी हुई लेखिका की तरह बातें कर रही हो.... लिखने की शुरुआत क्यों नहीं करती? मन जरा कहीं ठहरे तो फिर से लिखना शुरू करूं... पहले का तो बहुत सारा लिखा हुआ पड़ा है, मगर ठिकाने से रहे तो कुछ करूं। जीवन का खालीपन किसी स्वीट प्वाइजन की तरह होता है। धीरे-धीरे मौत की तरफ ले जाता है।
अगर इतना परेशान हो तो तलाक क्यों नहीं ले लेतीं।
तलाक लेने से पहले कोई दूसरा विकल्प तो होना चाहिए.... इतनी बड़ी जिंदगी अकेले तो नहीं काटी जा सकती और फिर इस उम्र में दूसरा कौन मिलेगा मुझे?
दुनिया में सिर्फ पुरुषों से प्रताड़ित होने वाली महिलाएं ही नहीं हैं, महिलाओं से प्रताड़ित पुरुष भी हैं। तलाश करो ...कोई मिल ही जाएगा।
देखिए किस्मत में क्या लिखा है।
वह रुआंसा हो गई।मैं बड़े भारी मन से घर लौटा।उससे काफी सहानुभूति हो रही थी। उसके पति के पति के प्रति क्षोभ से मन भर गया। मैंने निश्चय किया- जितना संभव हुआ उसकी मदद करूंगा। अब फोन पर उससे लंबी बातें होने लगी थीं। कई पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और कवि लेखकों से मैंने उसे मिलवाया। कई संस्थाओं ने मेरे आग्रह पर अपने कार्यक्रमों में भी उसे निमंत्रित किया, हालांकि उसका परचा भी मुझे ही लिखना पड़ता। मेहनत से वह दूर भागती थी। उसकी रुझान सिद्ध होने से कहीं अधिक प्रसिद्ध होने में थी। उसके परिचय का दायरा बढ़ता गया। साल बीतते बीतते उसने मुझसे अपनी उदासी और हताशा का जिक्र करना बंद कर दिया। मुझे खुशी हो रही थी कि मैं उसके कुछ काम आ पाया।अपनी अन्य व्यस्तताओं की वजह से अब मैं उसे समय नहीं दे पा रहा था। नए संपर्कों को प्रगाढ़ करने के क्रम में धीरे-धीरे वह वह भी मुझसे कटने लगी और अपनी तरफ से फोन करना बंद कर दिया। इस बीच कई बार समय तय करके भी वह घर नहीं आई। मगर मेरे माध्यम से कोई अवसर मिलना होता तो जरूर मिलती या किसी विषय पर कोई रेफरेंस चाहिए होता तो फोन पर लंबी बात भी कर लेती लेकिन बिना वजह मिलने-जुलने या बात करने में उसकी कोई रुचि नहीं रह गई थी।पहले जो अपनापन दिखाने का भाव था,वह कपूर की तरह उड़ गया था।

अचानक उसमें आए इस परिवर्तन से मैं चकित था।जब कभी मैं उससे इस बारे में पूछता तो उसका जवाब होता कॉलेज में कुछ नई जिम्मेदारियां बढ़ गई हैं, इसलिए बहुत बिजी हो गई हूँ।मैं कहीं भी आ जा नहीं पा रही हूं।हालांकि मुझे औरों से पता चलता रहता था कि कल वहां थी, परसो वहां थी, अगले महीने की इन इन तारीखों में वह शहर से बाहर जा रही है।

उसे प्रोमोट करने में कई लोग लगे थे। एक ठीक-ठाक दायरा बना लिया था उसने। पत्रकारों को खाने पर घर बुलाकर वह गिफ्ट प्रेजेंट करने लगी थी।बदले में वे लोग रिपोर्टिंग में उसके नाम के साथ वक्तव्य की तीन चार पंक्तियां भी देने लगे थे। कार्यक्रमों में आते जाते एक अधेड़ उम्र का पूंजीपति उस पर बुरी तरह फिदा हो गया था। लौटते वक्त वह अक्सर अपनी कार में कुछ लोगों को लिफ्ट दिया करता था। इसी क्रम में मोहिनी के रूप और यौवन पर कुछ इस तरह फिदा हुआ कि अपनी ही गाड़ी में उसका ड्राइवर बन बैठा। अब मोहिनी को अपनी कार निकालने की जरूरत नहीं पड़ती थी। मामा भानजी का बड़ा महफूज सा रिश्ता भी गाँठ लिया था दोनों ने.... मेरे मित्र इस जोड़ी के बारे में खुलकर बातें करते.. फिर कहते आपने बहुत संभावनाशील बनाकर प्रस्तुत किया था, अब देखिए उसका विकास...सबका साथ सबका विकास....हा हा हा...
 मैं जिसे शोषित और पीड़ित समझ रहा था,उसका यह रुप देख कर हैरान था।एक दिन ऐसा संयोग बना कि मोहिनी और मैं दोनों ही एक सेमिनार में साथ थे। कार्यक्रम खत्म होने से पहले ही वह मामाजी के साथ छूमंतर हो गई। कार्यक्रम की समाप्ति के बाद उसके कॉलेज के नवनियुक्त एक लेक्चरर महोदय मुझे बधाई देने के लिए मिले। उनसे दो मर्तबा पहले भी मुलाकात हो चुकी थी। उन्होंने अपनी गाड़ी में चलने का प्रस्ताव रखा तो मैं मना नहीं कर सका। रास्ते में कार्यक्रम की चर्चा शुरू हुई तो मैंने कहा - मोहिनी ने भी अच्छा परचा पढ़ा। उन्होंने मेरी तरफ ऐसे देखा जैसे कह रहे हों कि किसका नाम ले लिया आपने लेकिन जो कानों से सुना वो यह था कि लगता है मोहिनी के बारे में आप बहुत कम जानते हैं। यह परचा उसका लिखा हुआ नहीं था। यह तो मिस्टर त्रिपाठी ने लिखा था उसके लिए। आजकल उसके परचे वही लिखा करते हैं। बदले में कभी कभार उनके साथ फिल्म देखने चली जाती है।मोहिनी जैसा अवसरवादी आपको ढूंढने से भी नहीं मिलेगा।हमेशा अपने औरत होने का फायदा उठाने की ताक में रहती है। पहले एक प्रोफेसर साहब को फंसाकर कॉलेज में नौकरी ली,फिर कॉलेज के ट्रस्टी को फँसाकर नौकरी को स्थायी करवाया।फिर एक बिल्डर को फँसाया ,उससे बहुत कम पैसों में एक फ्लैट लिया और अब परिचितों के बीच में हुई बदनामी की भरपाई साहित्य की दुनिया में नाम कमाकर करना चाहती है।

पर उसके पति तो बहुत अमीर हैं .... किसी मल्टीनेशनल कंपनी में....
 किसने कह दिया आपसे.... वह तो एक प्राइवेट फॉर्म में क्लर्क है। मोहिनी जब तक कॉलेज में नहीं थी और किराए के मकान में थी, मजबूरन साथ रहा करती थी। जैसे ही उसने अपना मकान खरीदा, पति को दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंका।
लेकिन मैंने तो सुना कि वे उसकी उपेक्षा और मारपीट करते थे...
अपने प्रति सहानुभूति बटोरने के लिए यह कहानी वह हर नए आदमी को सुनाती है कि.... उसका पति शराबी है,व्यभिचारी है... अत्याचारी है, जबकि असल बात यह है कि इसने उसका जीवन नर्क बना दिया है। पैंतालीस की उम्र में उसकी शादी तो होने से रही। इसको तो खैर छत्तीस  मिल रहे हैं। नारी तो काठ की भी हो तो पुरुष खड़ा होकर एक नजर देखता है।
यह सब आपको कैसे पता....
हमारे कॉलेज में तो हरेक को इसकी कहानी पता है ,किसी से पूछ लीजिए.... यह सब सुनकर मेरी आंखें फटी रह गईं।कानों को बिल्कुल विश्वास नहीं हो रहा था कि मोहिनी ऐसा हो सकती है।
इत्तफाकन एक दिन चर्चगेट स्टेशन पर मेरे साथ एमए में पढ़ने वाली मेरी दोस्त निर्मला मिल गई। तय हुआ कि नरीमन पॉइंट समुद्र तट पर कुछ देर बैठा जाए।

 थोड़ी देर बाद क्या देखता हूं कि मोहिनी के गले में हाथ डाले उसके तथाकथित मामा जी चले आ रहे हैं। मोहिनी किसी बात पर हंसती जा रही है और मामाजी उसके गालों पर हल्की चपत लगाए जा रहे हैं। दोनों के नखरे बिल्कुल किशोर उम्र की प्रेमी-प्रेमिकाओं जैसे... हमारे बीच फासला इतना कम रह गया था कि न तो वह अपना रास्ता बदल सकती थी न ही मैं किसी दूसरी तरफ मुड़ सकता था। न चाहकर भी आंखें चार हो गईं। मुझे देखकर एक पल को वह अचकचाई लेकिन दूसरे ही पल सामान्य हो गई और इस अंदाज में आगे बढ़ गई जैसे मुझे जानती ही न हो। मुझे काटो तो खून नहीं। ऐसी कितनी जगहें जहां वह सिर्फ और सिर्फ मेरे कारण पहुंच पाई, जिसके लिए मैंने कितने परचे लिखे,दोस्तों और परिवार को दिया जानेवाला समय जिसे दिया,अपने काम अधूरे छोड़कर जिसके लिए कहीं और गया.... उसने मुझे पहचाना तक नहीं। मैं अपने आपको बहुत अपमानित महसूस कर रहा था।
निर्मला ने तंज किया- ऐसे क्या देख रहे हैं... इसे पहचानते हैं क्या....? 
क्या तुम इसको जानती हो ?
हां खूब जानती हूं.... मुझसे एक साल जूनियर थी इस्माइल युसूफ कॉलेज में। माँ सीधी साधी अनपढ़.... बाप ऑटो चलाता है।बेटी ने बिना कोई योग्यता हासिल किए बड़े-बड़े सपने पाल लिए। जब बीए कर रही थी, उसी समय एक फिल्म को ऑर्डिनेटर ने हीरोइन बनाने का झांसा देकर खूब घुमाया,मगर जब प्रेग्नेंट हो गई तो वह किराए का कमरा छोड़कर रफू चक्कर हो गया। इसने बहुतेरे प्रोड्यूसर  डायरेक्टरों के चक्कर लगाए।छह सात साल स्ट्रगल किया।कितनों से प्यार का नाटक किया और कइयों ने इससे प्यार का नाटक किया। लेकिन नाटक तो एक समय बाद खत्म ही हो जाता है। शादी के लिए तैयार ही नहीं हो रही थी। इससे दो छोटे भाई बहन और थे। उनका हवाला देकर मां बाप ने किसी तरह हाथ पैर जोड़कर राजी किया और एक क्लर्क से शादी कर दी। स्वच्छंद विचरण करने वाली परम महत्वाकांक्षी मोहिनी पिंजरे में कैद होकर कहां रहने वाली थी। बहुत जल्द घर में महाभारत होने लगा। बार-बार भागकर मायके चली आती थी।जब मां बाप ने भी दुत्कारना शुरू किया तो नौकरी करने की ठानी। इसके एक पुराने आशिक एक कॉलेज में थे।उन्होंने वहां कैजुअल लगवा दिया। वहां लगने के बाद उसने ट्रस्टी के साथ चक्कर चलाना शुरु कर दिया।जब आशिक महोदय ने ऐतराज किया और वहाँ से निकलवाने की धमकी दी तो झूठे आरोप लगवाकर इसने  उन्हें ही बाहर करवा दिया। अब महारानी आराम से वहां विराज रही हैं।
 मैं मन ही मन गुस्से से उबल पड़ा। इतना पतित है यह।मुझसे कोई काम पड़ा तो फिर से हँसते हुए सीधे घर चली आएगी।जो नमस्कार तक की औपचारिकता भूल गई,उससे आगे कोई संबंध क्या रखना...आज फोन पर ही इससे रिश्ता तोड़ लूंगा मैं।
 निर्मला से अलग होते ही मैंने मोहिनी को फोन किया।मेरा फोन रिसीव करते ही परम प्रसन्न हो जाने का दिखावा करने वाली मोहिनी आज एकदम सामान्य थी। मैंने कहा- तुम आज सामान्य शिष्टाचार भी भूल गई....वैसे तो कितनी बड़ी बड़ी बातें करती हो......
सर अगर हर एक रिश्ते को निभाती रहती तो मैं आज यहां तक नहीं पहुंचती.... मेरी कहानी तो निर्मला ने बता ही दी होगी आपको... निर्मला पहले मिल जाती तो शायद आप मेरी मदद न करते, मगर छोड़िए  मैं जो कुछ भी कर रही हूं, उससे आपका क्या नुकसान है, आपको क्या परेशानी है?

  तुम शायद यह कभी नहीं समझोगी  कि रिश्तो में सिर्फ फायदा और नुकसान नहीं देखा जाता क्योंकि तुमने रिश्तों और भावनाओं को ही व्यापार बना रखा है।

 प्यार के दो मीठे बोलों से पेट नहीं भरता सर। आपके पास और है क्या मुझे देने के लिए... जो आप कर सकते थे कर चुके। अब मैं आपकी परवाह क्यों करूँ.... मैंने भी कभी किसी से प्यार किया था। भावनाओं में बहकर अपना तन मन सब कुछ दे डाला था, मगर उस आदमी ने अपनी हवस की आग बुझाकर मुझे अकेला छोड़ दिया। उससे तो मैं बदला नहीं ले सकी, मगर उसका बदला मैं हर नए मर्द से लेती हूं। मुझे मर्द जात से नफरत हो गई है।

किसी एक ने धोखा दे दिया तो तुमने सारी पुरुष जात को ही खारिज कर दिया। शिक्षित होकर तुमने यही सीखा है।अगर वेश्यावृत्ति ही करनी थी तो इस पढ़ाई लिखाई का क्या मतलब है?  
 किस पढ़ाई-लिखाई की बात कर रहे हैं आप.... मेरे जैसे बहुत बीए,बीएड  घूम रहे हैं।मुट्ठी गरम किए बिना कोई नौकरी नहीं मिलती आजकल।
इसीलिए तुमने बिस्तर गर्म करने का रास्ता चुना
बिस्तर गर्म करने से देह नहीं जल जाती सर, मगर जब भूख लगती है तो अंतड़ियां सिकुड़ने लगती हैं। मैं जिस माहौल से निकली, अगर समझौते न करती तो जिंदगी भर घर में बैठे टसुए बहाती रहती। आपका अगला सवाल होगा कि मैंने अपने पति को क्यों छोड़ दिया- उसका भी जवाब सुन लीजिए। श्रीमान जी एक प्राइवेट फर्म में क्लर्क बन कर खुश हैं, इससे आगे उन्होंने कभी कुछ सोचा ही नहीं। पूरी जिंदगी मुझे अपने चरणों की दासी बना कर रखना चाहते थे। सिंपल हाउस वाइफ... उनके बच्चे पालूँ, उनके रिश्तेदारों और दोस्तों को डिनर कराऊं और इसी में अपना जीवन कुर्बान कर दूं ।मुझे नहीं करना था यह सब,छोड़ दिया इसीलिए। अगर उनके पदचिन्हों पर चलती तो यह घर, यह गाड़ी, ये ऐशोआराम नहीं होते मेरी जिंदगी में ।आप पतिव्रता की तलाश कर रहे हैं। आज के जमाने में एक ही पतिव्रता है- वेश्या। उसका पति सिर्फ पैसा है।मैंने जो कुछ किया पैसों के लिए ही किया।

वेश्या शब्द तुम्हारे लिए बहुत छोटा है। वेश्या भी अपने कुछ उसूल रखती है और जहां तक तुम वेश्या बनकर पहुंची हो,श्रम और योग्यता के सहारे भी पहुंच सकती थी, मगर तुम्हें शॉर्टकट चाहिए था। सफलता का क्या उदाहरण पेश कर रही हो तुम.... यही कि सही रास्ते पर चलकर सफलता नहीं मिलती।अपनी क्षुद्र महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए तुमने अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा दांव पर लगा दी और ऐसे खुश हो रही हो जैसे कोई बड़ा किला फतह कर लिया है ! अपने ऊपर पड़ने वाली उन निगाहों के बारे में कभी नहीं सोचा जो तुम्हारी करतूतें जानती हैं।हर सफल औरत को लोग यूं ही नहीं देखते, जैसे तुम्हें देखते हैं... कहते हुए मैंने फोन कट कर दिया।उसने अपनी ओर से कई बार फोन करके फिर से बात करने की कोशिश की,मगर मैंने फोन नहीं उठाया....रहिमन बिगड़े दूध को मथे न माखन होय।


माया नगरी में मनोहर

रासबिहारी पाण्डेय



रामअनुज ने मन मारकर निश्चय किया कि आज वे खुद मनोहर के घर जाएंगे और अपनी फिल्म का पूरा शेड्यूल तय करके ही लौटेंगे।उन्होंने सायन से लोखंडवाला के लिए ऑटो किया और निकल पड़े। सगा भाई सिनेमा की दुनिया में सफल हो जाए,वह भी बड़े भाई के प्रयास से... तो खुशी होना स्वाभाविक है। रामअनुज इस खुशी में डूब उतरा रहे थे लेकिन जब से उन्होंने भाई के साथ बेटे को लॉन्च करने की ठानी है, उनके पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे हैं। मनोहर ने आश्वस्त किया है कि उनकी फिल्म में वह अवश्य काम करेगा मगर पिछले 6 महीने से कोई निश्चित तारीख नहीं बता रहा है।फोन करने पर हर बार कोई और उठाता है। चार बार करो तो कहीं एक बार उससे बात हो पाती है। आजकल वह उनके घर भी नहीं आ रहा है। पहले तो रात बिरात कभी भी बिना फोन किए घर पर आ जाता था,मगर जब से उन्होंने अपनी फिल्म बनाने की बात की है,उसने इधर आना ही छोड़ दिया है। वे उसकी व्यस्तता से परिचित थे।फिल्मों की शूटिंग करना, उनके प्रोमोशन में भाग लेना, नई फिल्मों की तैयारी आदि में इतना वक्त लगता है कि कलाकार चाह कर भी सगे-संबंधियों के लिए वक्त नहीं निकाल पाते। जो अपने काम में ढीले पड़ते हैं, जल्द ही उनकी जगह दूसरे ले लेते हैं।
 कभी कभी रामअनुज के मन में यह भी आता था कि कहीं ऐसा तो नहीं कि मनोहर उनकी फिल्म में काम ही नहीं करना चाहता,क्योंकि यहां तो उसे कुछ भी मिलने वाला नहीं है, न ही यह बहुत बड़े बजट की फिल्म है कि उसका कोई अतिरिक्त आकर्षण हो.. पर फिर उन्होंने सोचा ....नहीं ऐसा कैसे हो सकता है.. मनोहर को उन्होंने बेटे की तरह पाला है। वह उनसे 10 साल छोटा है। पिताजी की मृत्यु के बाद मनोहर के स्कूल की फीस, किताबें यहां तक कि कपड़े, जूते, जेब खर्च सब कुछ की जिम्मेवारी वही उठाते थे। मनोहर बचपन से ही बहुत सुरीला था, जहां भी गाता, सुनने वालों की भीड़ लग जाती, मगर गायक बनने की उसकी कोई इच्छा नहीं थी। उसके छोटे से दिमाग में यह बात कभी आई ही नहीं कि गाना बजाना भी आजीविका का साधन हो सकता है लेकिन रामअनुज को गायन की कीमत पता थी। उन्हें पता था कि गायक के रूप में सफल होने के बाद उसे कुछ और करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। उन्हें याद है मनोहर जब पहली बार मुंबई आया था, तभी उन्होंने उसे नसीहत दी थी कि बढ़िया से रियाज कर.... लोक गायकी को कम मत समझ। मनोहर ने प्रतिवाद किया - भैया बिरहा पचरा गाना तो अहीर कोइरी का काम है.....बाभन ठाकुर गवैया बनेगा तो लोग क्या सोचेगा... शादी विवाह में भी आफत हो जाएगा। उन्होंने उसे प्यार से समझाया- पागलों जैसी बात मत कर.... आज शारदा सिन्हा और भरत शर्मा को कौन नहीं जानता... गुरदास मान पंजाबी गाते-गाते पंजाबी फिल्मों का हीरो बन गया।भोजपुरी बोलने वाले करोड़ों लोग हैं। इनके लिए न तो अच्छा ऑडियो आ रहा है, न ही अच्छी फिल्म आ रही है।अनपढ़ विरहिया कीर्तनिया के भरोसे चल रही है भोजपुरी। पढ़ा लिखा गायक आएगा तो पूरा मार्केट कैप्चर कर लेगा। तू बीए करके नौकरी ढूंढने की बजाय गायक बनने के लिए हाथ पांव मार,लेकिन लाख समझाने के बावजूद मनोहर गायन को बहुत गंभीरता से नहीं ले पा रहा था।

 मुंबई में मनोहर को वैसे तो हर चीज अजूबा लग रही थी, लेकिन दो तीन चीजें देख कर उसे काफी ताज्जुब हुआ। पहला यह कि हर तीसरे चौथे मिनट पर केवल 30 सेकंड रुककर इतनी लोकल ट्रेनें कैसे दौड़ रही हैं और दूसरा यह कि इतने उड़ते हुए हवाई जहाज कहां जा रहे हैं? यहां तो इन्हें सिर उठाकर कोई नहीं देखता जबकि गांव में एक छोटा हेलीकॉप्टर देखने के लिए भी भीड़ लग जाती है। बस और लोकल ट्रेनों में बेफिक्री के साथ साथियों के कंधे पर अपना सर रख कर सोती हुई लड़कियां और प्रेमिकाओं को बाहों के घेरों में कैद करके सुरक्षा कवच बनाए प्रेमी भी उसके कौतूहल के केंद्र बने रहते थे।वह मुंबई में 15 दिन रह कर वापस बनारस आ गया।वह फिलहाल काशी विद्यापीठ में बीए फाइनल का छात्र था। यहां आकर भैया के निर्देशानुसार उसने एक तबले बजाने वाले मुंबई की काल्पनिक कथाएं सुना सुना कर और अगली बार वहां घुमाने का प्रलोभन देकर अपना प्रयोजन सिद्ध करने में लग गया। यूनिवर्सिटी की कल्चरल टीम में उसका चुनाव नहीं हुआ- भैया को फोन पर यह सूचना देते हुए वह काफी गुस्से में था।उसे वहम था कि वह लोकल पॉलिटिक्स का शिकार हुआ है लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं था ।उसके साथ बेईमानी नहीं हुई थी,न ही गलत लोगों को चुना गया था। उसकी अपनी प्रस्तुति में अभी बहुतेरी खामियां थी जिसे वह स्वयं समझ नहीं पा रहा था और निर्णायकों को कोस रहा था ।उसके श्रोता मात्र उसके सहपाठी थे।सहपाठी उसे प्रोत्साहित जरूर करते थे,लेकिन उनमें से किसी की पहुंच इतनी बड़ी नहीं थी कि कोई बड़ा मंच दिला सके। मनोहर की गायकी हॉस्टल के कमरे तक ही सीमित रह जाती थी। इसी बीच विधानसभा चुनाव की घोषणा हुई। एक प्रत्याशी ने पहली बार मनोहर को अपने चुनावी मंच से गाने का मौका दिया। मनोहर उल्टे-सीधे गीत गाकर भीड़ को बांधने में सफल हो गया। प्रोग्राम की क्लिपिंग एक नेशनल चैनल पर देख कर रामअनुज का मन काफी प्रसन्न हुआ।उन्होंने मनोहर को फोन किया कि वह मुंबई आ जाए। म्यूजिक कंपनियों से संपर्क कर उसके गीतों का सीडी निकालना है। इधर मनोहर पुलिस में भर्ती के नाम पर एक दलाल को तीस हजार रुपये दे चुका था लेकिन जब भर्ती होने वालों की लिस्ट टँगी तो उसमें से उसका नाम गायब था। उसने बहुत खोजबीन की तो पता चला कि जिस दलाल को उसने पैसे दिए थे, पैसे वह खुद हड़प गया। सिर्फ उसका ही नहीं अन्य बीस लोगों के भी पैसे ले उड़ा। पता चला कि किसी ने उसे फिल्म बनाकर करोड़ों कमाने का झांसा दिया है। इसलिए सारे पैसे लेकर वह मुंबई भाग गया है। मनोहर मुंबई जाकर दलाल को ढूंढने के बारे में सोचने लगा। आखिर उसके भैया भी तो मुंबई में ही थे। दूसरे दिन ही वह टिकट के लिए रिजर्वेशन काउंटर पर पहुंचा। वहां पता चला कि मुंबई जाने वाली सारी गाड़ियों फुल हैं। एक महीने के बाद ही आरक्षण मिल पाएगा। मनोहर इतना इंतजार करने के पक्ष में नहीं था। 

गर्मियों की छुट्टी वाले मौसम में ट्रेन में भारी भीड़ होने के बावजूद मनोहर महानगरी एक्सप्रेस के जनरल डिब्बे में टॉयलेट के पास अखबार बिछाकर बैठ गया। रात में पैर मोड़कर वहीं सो भी लिया। उसके पास सामान के नाम पर एक छोटा सा झोला भर था जिसमें एक पैजामा कुर्ता और कुछ सीडी  थी। मुंबई पहुंच कर जब उसने भैया को अपनी सीडी दिखायी तो वे गदगद हो गए। मनोहर के गीतों पर लोग झूम रहे थे। नई उम्र के लड़के तो नाच भी रहे थे। रामअनुज को विश्वास हो गया कि अगर मनोहर को कोई बड़ी कंपनी चांस दे तो वह मशहूर हो सकता है और गायन ही उसका कैरियर हो सकता है। आजकल तो एक से एक घुरहू बिरहू सिर्फ सीडी से प्रचारित होने के बल पर बड़े कलाकार हो गए हैं...... लेकिन मनोहर का ध्यान कहीं और था। उसने भैया से दलाल वाली पूरी बात बताई और कहा कि किसी भी कीमत पर उसे छोड़ना नहीं है। रामअनुज को उसके भोलेपन पर हंसी आ गई और उन्होंने उसे प्यार से डांटते हुए कहा- डेढ़ करोड़ आबादी है मुंबई की.... कैसे ढूंढोगे उसे? जो हुआ उसे भूल जाओ। कल वाई सीरीज के ऑफिस चलेंगे। तुम्हारी सीडी के बारे में बात करते हैं ।रामअनुज ने सुबह सुबह उठकर सुंदरकांड का पाठ किया। गणेश जी को दूर्वा चढ़ाया और ऑफिस से आधे दिन की छुट्टी लेकर मनोहर के साथ वाई सीरीज के दफ्तर पहुंचे। वे कंपनी के मालिक से मिलना चाहते थे,लेकिन रिसेप्शनिस्ट ने उन्हें समझाया कि वे नए लोगों से नहीं मिलते।आप मैनेजर साहब से मिल लीजिए।उसने इंटरकॉम पर मैनेजर से बात की और उसके पास भेज दिया। मैनेजर के सामने बैठकर रामअनुज ने लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा- सर बहुत बढ़िया गाता है मनोहर। आप यह सीडी देख लीजिए।इसे अपनी कंपनी से जरूर चांस दीजिए। मैनेजर ने सीडी बिना देखे एक तरफ करते हुए उदासीनता के साथ कहा-देखिए अच्छा गाने बजानेवाले तो बहुत हैं,लेकिन बाजार में कम ही लोग चल पाते हैं। हमलोग नए आदमी पर रिस्क नहीं लेते।हाँ अगर एक बार आप फाइनेंस करें तो हम इसकी मार्केटिंग कर सकते हैं। मामला तीन लाख का है आप सोच लीजिए। कर सकते हों तो फोन करके कभी भी आ जाइए। इतना कहने के साथ ही मैनेजर ने फिर मिलते हैं कहकर हाथ आगे बढ़ा दिया जिसका सीधा मतलब था कि अब आप लोग यहां से प्रस्थान करें।वे बड़े भारी मन से घर लौटे। जितना दूर तक वे सोच रहे थे .....मनोहर को इसका कोई अंदाजा नहीं था। वह उनके सरकारी क्वार्टर पर बैठे विभिन्न चैनलों पर आ रही फिल्मों का आनंद ले रहा था और चोरी छुपे उनके फोन का दुरुपयोग कर रहा था।रामअनुज गंभीर उलझन में पड़े थे। क्या करें..... भाई कितने दिन गली-गली भटकेगा। ऐसे गाते-बजाते तो उसकी सारी उम्र निकल जाएगी। बड़ा अवसर न मिलने के अभाव में उससे बहुत अच्छा गाने बजाने वालों का हश्र वे देख चुके हैं।सिर्फ पैसे के कारण उसे चांस न मिले उन्हें यह गवारा नहीं था।

 एक हफ्ते तक वे पसोपेश में पड़े रहे,फिर उन्होंने भगवान की तस्वीर के सामने मन ही मन कुछ निश्चय किया और अगले दिन मनोहर को साथ लेकर वाई सीरीज के दफ्तर पहुंचे। मैनेजर से मिलकर उन्होंने अनुरोध किया कि पैसा थोड़ा कम कर दें लेकिन मैनेजर अड़ा रहा ।उसने बड़ी बेरुखी से कहा कि यूपी बिहार वालों की आदत बहुत खराब है। पंजाब वाले टीवी पर प्रोमोशन के लिए भी पैसे देकर जाते हैं और ये लोग ऑडियो वीडियो का भी पैसा नहीं दे पाते और सपना पाल लेते हैं कि अपना भाई,अपना बेटा बहुत बड़ा स्टार बन जाए। रामअनुज ने स्वयं को बहुत अपमानित महसूस किया। इससे अधिक कुछ सुनना उनकी शान के खिलाफ था। उन्होंने चेक बुक निकाला और कंपनी के नाम से तीन लाख का चेक काट कर तत्काल सुपुर्द कर दिया। मनोहर को 1 हफ्ते के अंदर बुला लिया गया। उसके पास गीत-संगीत तो पहले से मौजूद था। सवाल सिर्फ उसे सही तरीके से रिकॉर्ड करने और पब्लिसिटी करने का था। कंपनी के लिए वर्षों से काम कर रही अनुभवी टीम ने उसे बड़ी लगन से रिकॉर्ड किया। मनोहर का भाग्य कहिए या जन जन के मन में बसे भोजपुरी के उन संस्कार गीतों का कमाल..... मनोहर की सीडी चल निकली। कंपनी वालों के लिए वह फायदेमंद साबित हुआ। अब हर दूसरे तीसरे महीने उसकी नई सीडी आने लगी। सीडी से प्रचारित होने की बदौलत उसे देश के बहुत सारे हिस्सों से प्रोग्राम भी मिलने लगे। दशहरा दीवाली जैसे मौकों पर  दिल्ली,मुंबई से गायकों को बुलाने वाले मंडलों ने भी उसे अपने मंच से गाने का मौका दिया। लेकिन तीन चार वर्षों के भीतर दो तीन  दूसरे गायक भी हिट हो गए। मनोहर जब उनके मुकाबले बाजार में टिका नहीं रह सका तो कंपनी वालों ने भी अपना हाथ खींच लिया और अपने रूखे व्यवहार से उसे यह महसूस करा दिया कि उपयोगिता समाप्त होने के बाद म्यूजिक कंपनियों के लिए गायक की स्थिति उस निचुड़े हुए नींबू की तरह हो जाती है जिसे कचरे के डिब्बे में फेंक दिया जाता है। गायक के रूप में नाम चल जाने के बाद भी मनोहर अपनी ख्याति और संपत्ति दोनों से असंतुष्ट था। मुंबई में रहने के लिए उसके पास घर तक नहीं था। बड़े भाई के घर में ही किसी तरह गुजर बसर कर रहा था। बड़े भाई के छोटे से फ्लैट में उनके दो लड़कों और भाभी के सामने किसी को बुलाने में भी संकोच होता था। वह अक्सर भाई से पूछता कि अब क्या करे..... रामअनुज को खुद भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आगे क्या करने के लिए कहें।अचानक एक दिन उन्हें एक अखबार में गायक किशोर कुमार की जीवनी पढ़ने को मिली।उनके दिमाग में आयडिया कौंध गया।उन्होंने घर आते ही मनोहर को सुझाव दिया कि मुंबई कला की नगरी है। किशोर कुमार ने गायन के साथ एक्टिंग में भी अपना लोहा मनवाया था।तुम एक्टिंग के लिए स्ट्रगल करो। बहुत विचार के बाद मनोहर ने भी महसूस किया कि फिल्मों में इज्जत और शोहरत के साथ-साथ पैसे भी खूब मिलते है। अगर कहीं एक्टिंग में उसका सिक्का चल गया तो सारा टेंशन ही खत्म हो जाएगा। उसने अपना फोटो सेशन करवाया और चल पड़ा फिल्म ऑफिसों की ओर।
हर जगह उसे अपना फोटो छोड़ने के लिए कहा जाता। कई महीने चप्पलें घिसने के बाद भी कोई परिणाम निकलता न देखकर वह काफी हताश हुआ। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे..... रामअनुज ने उसे ढांढस बंधाया कि फिल्मी दुनिया में प्रवेश पाने के लिए सबने ऐसे ही शुरुआत की है। इसी तरह का संघर्ष किया है। नई योजना में सफलता मिलते न देखकर दुखी और निराश मनोहर एक दिन कमरे में बेचैनी से इधर उधर चहलकदमी कर रहा था कि उसके फोन की घंटी बजी। बोलने वाले ने अपना नाम नवरंग पचीसिया बताया। उसने कहा कि आप हमारे ऑफिस में अपना फोटो छोड़ गए थे।अब हमारा प्रोजेक्ट शुरू होने वाला है, इसलिए तत्काल मिलें। निर्माता पचीसिया सी  ग्रेड फिल्म के बजट में एक भोजपुरी फिल्म बनाना चाहता था। उसने मनोहर के सामने शर्त रखी कि फिल्म के लिए मनोहर को मात्र 25 हजार मिलेंगे, लेकिन वह लीड रोल में होगा। मनोहर तो मुफ्त में भी बड़े पर्दे पर ब्रेक पाने के लिए बेचैन था। उसने तत्काल हां बोल दिया। निर्माता घाट घाट का पानी पिए हुए था। उसने यह हिसाब लगा लिया कि गायक भोजपुरी प्रदेशों में पहले ही चर्चित हो चुका है। इस पर पब्लिसिटी का खर्च तो बचेगा ही, रिलीज के समय गा बजाकर फिल्म के प्रोमोशन में भी कूद पड़ेगा। पर्दे पर उसे नाचते गाते हुए देखने के लिए कुछ लोग तो आएंगे ही। ज्यादा फायदा न हुआ तो भी पैसे डूबेंगे तो नहीं। 

शूटिंग शुरू हुई तो मनोहर को अपने डॉयलाग याद ही नहीं हो पा रहे थे। हर सीन का रीटेक करना पड़ता था। शूटिंग के दौरान स्टूडियो में आधे समय तक कट की ही आवाज गूंजती रहती थी। निर्माता ने एक दिन खीझकर कहा- पंद्रह दिन हो गए मनोहर जी, कुछ तो सिनेमा की भाषा समझिए....बजट ओवर हो रहा है।कहीं आपको देने वाले पैसे भी इसी में न चले जाएं।किसी तरह फिल्म पूरी हुई।कथा पटकथा के साथ शूटिंग की बहुतेरी कमियों के बावजूद फिल्म सिर्फ गानों के बल पर चल निकली। नई पीढ़ी के वे लड़के जो मनोहर की गायकी के फैन थे, यार दोस्तों के साथ सिनेमाहाल पहुंचे। निर्माता ने जितना लगाया था उससे चार गुना अधिक कमाया। मनोहर की तो लॉटरी लग गई। उसे लेकर फिल्म बनाने की होड़ मच गई। जो मनोहर पचीस हजार में रात भर गाता था अचानक उसका भाव प्रति फिल्म पचीस लाख हो गया। दो वर्ष के भीतर उसके पास अपनी गाड़ी, अपना घर सब कुछ हो गया।वह अब एक साथ कई फिल्में करने लगा और अपना काम देखने के लिए बाकायदा एक सेक्रेटरी भी रख लिया। 
फिल्मी दुनिया में सफल हो जाने के बाद बड़े भाई से उसका मिलना जुलना कम हो गया था। कभी-कभी फोन पर बातचीत हो जाया करती थी। रामअनुज ने सोचा था कि उन्हें फ्लैट खरीदने में वह कुछ मदद करेगा लेकिन मनोहर को इसकी कोई सुध ही नहीं रही। रामअनुज के बड़े बेटे का अभिनय के क्षेत्र में बचपन से ही काफी रुझान था। वह अंतरमहाविद्यालयीन प्रतियोगिताओं में कई पुरस्कार भी जीत चुका था। चाचा की सफलता से प्रेरित होकर वह स्वयं भी अभिनय को ही कैरियर बनाना चाहता था। उसने रामअनुज से विनती की कि चाचा के साथ उसे भी लांच कर दें तो उसे आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। दूसरे निर्माताओं की फिल्म में प्रमुख भूमिका पाने के लिए पता नहीं कितने दिनों तक संघर्ष करना पड़ेगा।रामअनुज ने पहले तो उसे समझाया लेकिन जब उसने बात नहीं मानी और कई दिनों तक खाना पीना भी छोड़ दिया तो उन्हें अपना निर्णय बदलना पड़ा।उन्होंने मनोहर से बात की तो वह तत्काल तैयार हो गया।रामअनुज ने अपनी नौकरी को आधार बनाकर बैंक से पचास लाख रुपये का लोन करवाया। कथा पटकथा तैयार हुई और चरित्र अभिनेताओं का भी चयन हो गया लेकिन मनोहर की व्यस्तता के कारण सब कुछ बीच में लटका पड़ा था। लोखंडवाला आ गया सर ..... ऑटो वाले की आवाज से रामअनुज वर्तमान में लौटे।

राइट लेकर थोड़ा आगे रोक लो ।ऑटो वाले को पैसे देकर वे मनोहर की बिल्डिंग में दाखिल हुए।मनोहर कुछ लोगों के साथ बैठा हुआ था। बैठे हुए लोग संभवतः अपनी नई फिल्मों के बारे में बात करने आए थे। रामअनुज को देखते ही मनोहर ने तत्काल उठकर चरण स्पर्श किया और बोला सॉरी भैया!बहुत बिजी चल रहा हूं, इसलिए आपके पास नहीं आ पाया। अच्छा हुआ जो आप आ गए।रामअनुज ने कहा- कोई बात नहीं, सब कुछ रेडी है। बस तुम्हारी डेट चाहिए। बताओ ...उस हिसाब से लोकेशन बुक करूं.... मनोहर ने कहा - ठीक तो है भैया। डेट के बारे में मेरे सेक्रेटरी से बात कर लीजिए। आजकल मुझे खुद याद नहीं रहता कि कब कहां जाना है। वही डायरी मेंटेन करता है। रामअनुज को अटपटा लगा कि सेक्रेटरी से क्यों बात करें,लेकिन बात बिगड़ न जाए इसलिए चुप रहे और बगल के कमरे में सेक्रेटरी के पास पहुंचे।सेक्रेटरी ने उन्हें बाअदब बैठाया और पूछा- कब शूटिंग करना चाहते हैं सर.... रामअनुज ने कहा- बस अगले महीने..... मनोहर की एक साथ 25 दिन की डेट चाहिए।सेक्रेटरी ने बिना डायरी देखे जवाब दिया- सॉरी सर अभी तीन साल तक उनकी कोई डेट खाली नहीं है, उसके बाद के लिए तैयार हों तो कहें।रामअनुज को गुस्सा आ गया। उन्होंने आग्नेय नेत्रों से सेक्रेटरी की तरफ देखा और बोले- जानते हो न मनोहर मेरा सगा छोटा भाई है।सेक्रेटरी बोला- जानता हूँ सर, लेकिन अब वह सिनेमा के भी तो सगे हो चुके हैं ।आपको शायद पता नहीं कि आने वाले दिनों में उनकी 10 फिल्में फ्लोर पर जा रही हैं जिसके लिए सभी निर्माताओं से अग्रिम पैसे लिए जा चुके हैं ।इधर वे हिंदी फिल्मों में करैक्टर रोल्स में भी आ रहे हैं।6 महीने बाद चुनाव होने वाले हैं, जिसके लिए कई पार्टियाँ टिकट ऑफर कर रही हैं। उसके लिए भी उनकी मीटिंग सिटिंग चल रही है।हमारी बात तो बहुत पहले हो चुकी है.... उसी में किसी तरह एडजस्ट करिए।सॉरी सर मैं कुछ नहीं कर सकता- सेक्रेटरी ने कहा। 

रामअनुज अपने गुस्से को दबाना चाहते थे ,बावजूद उसके उबल पड़े- तुम समझते क्या हो अपने आपको। मैंने इंटरेस्ट पर पैसा लिया है, मुझे सड़क पर लाना चाहते हो, मेरी साख मिट्टी में मिलाना चाहते हो.... ऊंची आवाज सुनकर कमरे में मनोहर के साथ बैठे प्रोड्यूसर डायरेक्टर भी बाहर निकल आए। रामअनुज ने मनोहर की ओर देख कर कहा- कैसे-कैसे लोगों को अपने पास रख लिया है तुमने...डेट के लिए मुझे ही मना कर रहा है, बोलता है कि तीन साल तक कोई डेट ही खाली नहीं है। मेरे बारे में पता नहीं है इसको... जरा बताओ इसे मैं कौन हूं.... उन्हें उम्मीद थी कि मनोहर तत्काल सेक्रेटरी की खबर लेगा। हो सकता है उसकी छुट्टी भी कर दे, लेकिन मनोहर ने ऐसा कुछ नहीं किया। वह उनकी तरफ देख कर हौले से मुस्कुराया मानो कह रहा हो आप आज भी मुझे वही मनोहर समझकर चल रहे हैं जो आपकी झिड़की सुनने के बावजूद झोला उठाकर पीछे पीछे चला करता था। लेकिन उसने स्पष्ट कुछ नहीं कहा। तभी उसके मोबाइल की घंटी बजी।उसने कहा- हां हां निकल चुका हूं। कार में बैठते हुए उसने कहा- फोन पर बात करूंगा भैया..... अभी जरा जल्दी में हूं। रामअनुज को लगा जैसे पेड़ की शाख से फिसल कर अचानक धड़ाम से धरती पर गिर पड़े हों और मानो उस पेड़ की शाख से मनोहर ने ही उन्हें धक्का दिया हो।
 शाम को घर पहुंचकर रामअनुज ने सारी बात अपनी पत्नी रंजना को बताई। रंजना ने उन्हें समझाया- आप चिंता मत करिए। मैं बात करूंगी उससे... डेट देगा क्यों नहीं... अभी थोड़ा बिजी भी तो हो गया है। थोड़ा इंतजार कर लेंगे हम। साइलेंट पर चल रही टीवी पर अचानक मनोहर का चेहरा दिखा तो उन्होंने साउंड ऑन किया। न्यूज़ एंकर बता रही थी- मुंबई के कल्याण लोकसभा क्षेत्र से समता पार्टी ने उसे अपना उम्मीदवार घोषित किया है। पार्टी अध्यक्ष के पांव छूते हुए मनोहर की क्लिपिंग बार-बार दिखाई जा रही थी।तभी उनके दरवाजे की घंटी बजी। पत्नी ने दरवाजा खोला तो मनोहर की पत्नी सीमा अपने तीन साल की बेटी के साथ एक बड़ा सूटकेस लिए खड़ी थी।अरे वाह ...क्या बात है ...वेलकम ! पहले फोन कर देती तो बेटे को भेज देती।खैर कोई बात नहीं।रामअनुज सोच में पड़ गए।उनके घर सीमा तो दो-तीन बार मनोहर के साथ ही आई है। इस तरह अकेले आने का क्या मतलब हो सकता है। रात में सबको खिला पिलाकर पत्नी जब बिस्तर पर आई तो कहने लगी -सीमा और मनोहर के बीच ठीक ठाक नहीं चल रहा है। वह कह रही है कि पिछले 1 साल से वे घर बहुत कम आते हैं।दस पंद्रह दिन पर आते भी हैं तो देर रात सिर्फ सोने के लिए। सुबह देर तक सोते रहते हैं और जब उठते हैं तो घर से बिना खाए पिए निकल लेते हैं। उनके ड्राइवर ने बताया कि एक तलाकशुदा बंगाली लड़की है जो सीरियलों में छोटे-मोटे रोल करती है,उसीके साथ इनका चक्कर है आजकल। जब भी फुर्सत में होते हैं तो घर आने की बजाय उसी के पास चले जाते हैं। पता चलने पर जब मैंने उससे पूछा तो पहले तो ना नुकुर करते रहे फिर एक दिन बोले- बाहर कोई भी हो बीवी के नाम से तो तुम ही जानी जाती हो। इस तरह जिंदा मक्खी मुझसे नहीं निगली जाती। आप लोग कुछ कीजिए नहीं तो मैं जहर खा कर मर जाऊंगी। तभी से बेडरूम में बैठी रो रही है।
 इतना गिर जाएगा मनोहर... मैंने तो यह सोचा ही नहीं था –रामअनुज ने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा-देखना अब वह बहुत आगे जाएगा।रंजना ने कहा –वह कैसे?

उसने सारे रिश्ते को दफनाना जो शुरू कर दिया है। यश और धन की प्रबल महत्वाकांक्षा उसे राजनीति की तरफ खींच ले गई। बहुत साधना के बाद कलाकार का अपना एक मकाम बनता है। जो कला में रम जाए,उसे बाकी चीजों में रस नहीं मिलता। कोई संवेदनशील कलाकार राजनीति की दुनिया में जाएगा भला!तुम्हें क्या लगता है राजनीति में वह समाज सेवा के लिए गया है।जो शख्स सगे भाई की फिल्म करने में अपना नफा-नुकसान देख रहा है।वह करोड़ों लोगों के दुख दर्द से कैसे जुड़ेगा?छोड़ो अब हमारे बस में कुछ भी नहीं रह गया है। होइहि सोइ जो राम रचि राखा... को करि तर्क बढ़ावै शाखा .....मुझे सोने दो। नींद पूरी नहीं होती तो ऑफिस में झपकी आने लगती है, अपना काम पूरा नहीं होता और काम पूरा नहीं होता तो बॉस की डांट सुननी पड़ती है। थोड़ी ही देर में रामअनुज खर्राटे लेने लगे। पत्नी सीमा की बातों से तनाव में आ गई थी। बार-बार करवट बदल रही थी, पर नींद आंखों से गायब थी। आधे घंटे बाद वह बिस्तर से उठी और किचन में जाकर बर्तन धोने लगी।