अनुष्का:
साहित्य की ये सनी लियोनी और विपाशा बसुएँ- रासबिहा...: साहित्य की ये सनी लियोनी और विपाशा बसुएँ- रासबिहारी पाण्डेय / पिछले दिनों युवा संभावनाशील रचनाकार को दिया जानेवाला भारतभूषण पुर...
Tuesday, 27 September 2016
साहित्य की ये सनी
लियोनी और विपाशा बसुएँ-
रासबिहारी पाण्डेय
पिछले दिनों युवा संभावनाशील
रचनाकार को दिया जानेवाला भारतभूषण पुरस्कार दिल्ली की जिस छात्रा को दिया गया
उसकी सरस्वती पर लिखी एक निहायत घटिया और फूहड़ कविता को मंगलेश डबराल और उनके
लगुए भगुओं ने फेसबुक पर वायरल कर दिया और लगे हाँकने कि यह तो बहुत ऊँची कविता
है.... लोग समझ ही नहीं पा रहे हैं ।थोड़े ही दिन बाद भाई लोगों ने तोताबाला और
दोपदी नाम से दो फेंक आइडी बनायी और सुबह शाम दोपहर लगे कवितायें पोस्ट करने .....
कवितायें भी कैसी कैसी ......मैंने नहीं उतारा दरोगा के सामने अपना पेटीकोट...चाहे
जो करूं शरीर तो मेरा है.....देहराग से ओतप्रोत .....सिर्फ और सिर्फ रोमांस नहीं ....संभोग
के इर्द गिर्द का व्यायाम... रूस में बैठे
एक अध्यापक तो बाकायदा प्रवक्ता ही बन बैठे इनका.....डमी के लिए कितने दिन तक
मेहनत करते भला....चुप हो गये.... अब आँधी के बाद वाला सन्नाटा पसरा है । भाई लोग
किसी नयी प्रतिभा की तलाश में लगे हैं।हिंदी पाठकों के लिए ऐसी छिछोरी कवयित्रियों
की औकात सनी लियोनी और विपाशा बसु से रत्ती भर ज्यादे नहीं है।
हिंदी
की विभिन्न साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में इधर कुछ वर्षों में स्त्री विमर्श के नाम
पर जो कुछ बातें होती रही हैं,उनमें प्रमुखतःस्त्री के प्रति समाज,धर्म एवं
पुरुषों के दृष्टिकोण की ही ज्यादेतर चर्चा रही है।इनमें यदि कहीं स्त्री के
व्यक्तिगत दोष या कमी की बात आयी भी है तो उसे पुरुष वर्चस्वता के खाते में डाल
दिया गया है- जैसे बहू के प्रति सास या ननद का अन्यायपूर्ण क्रूर बर्ताव या दहेज
हत्या।कहा गया कि ऐसे कृत्य सासें या ननदें अपने जेठों,देवरों,पतियों भाइयों आदि
पुरुषों के बहकावे या धमकियों से मजबूर होकर ही करने को विवश होती हैं।स्त्री की
कमजोर आर्थिक स्थिति की भी चर्चा हुई है।इन सब बातों के साथ ही स्त्री विमर्श का
दायरा पिछले कुछ वर्षों में व्यक्तिगत आरोपों, प्रत्यारोपों,लांछनाओं तक भी जा
पहुँचा है।लेकिन इस समूची समस्या की जड़ में समाहित एक और अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू
की ओर ध्यान देना अति आवश्यक है।वह यह कि अपनी क्षुद्र महत्त्वकांक्षाओं की पूर्ति
के लिए कुछ स्त्रियां समाज के आगे खुद स्वयं को किस तरह एक बाजारू एवं बिकाऊ माल
और ‘इस हाथ ले,उस हाथ दे’ की समझौता शर्त के तौर पर पेश करती हैं।यहाँ मैं
विज्ञापन जगत और फिल्म इंडस्ट्री की मॉडल और अभिनेत्रियों की बात नहीं कर
रहा,कॉलगर्ल्स ,बार गर्ल्स या वेश्याओं की भी नहीं।ये तो पूँजीवादी सामाजिक व्यवस्था
की अभिन्न अंग हैं।मैं अशिक्षिताओं और गरीबी रेखा के नीचे जीने को विवश महिलाओं की
भी बात नहीं कर रहा, बल्कि मध्यमवर्गीया-उच्चवर्गीया कुछ उन महिलाओं की बात कर रहा
हूं जो पर्याप्त पढ़ी लिखी हैं,नौकरीशुदा या उपार्जनक्ष हैं,लेकिन निहायत गैरजरूरी
और क्षुद्र सी महत्त्वकांक्षाओं की पूर्ति के लिए नारी की गरिमा को गिरानेवाले
कृत्य पूरी योजनाबद्धता के साथ चौकस होकर कर रही हैं।नौकरी पाने या किसी भी नैतिक
(असमाजिक नहीं) कर्म के द्वारा उपार्जन करने के लिए छोटे मोटे समझौतों की बात तो
समझ में आती है लेकिन लेखिका के तौर पर स्वीकृति पाने के लिए,कवयित्री कहलाने के
लिए,समारोहों में स्थान पाने के लिए,छपने –प्रकाशित होने के लिए ,शिक्षिता
,नौकरीशुदा उपार्जनक्ष महिलाओं का ‘इनडीसेंट’ समझौतों का प्रस्ताव पत्र लेकर साहित्यिक समाज
में डोलती फिरना,मात्र साहित्यिक यशलिप्सा की पूर्ति के लिए खुद को साहित्यिक
दलालों के हाथों स्वेच्छा से सौंप देना कौन सा नारीत्व है?
स्वयं की अस्मिता
खोकर भी जोर शोर से स्त्री अस्मिता की बातें करनेवाली ,साहित्य में स्थान पाने के
लिए समर्थवानों को दिल देनेवाली ये महिलाएं सार्वजनिक मंचों पर बढ़ चढ़ कर स्त्री
विमर्श करती हैं और इस बात की वकालत करती हैं कि समाज में नारी की गरिमा बनी रहे।
पुरुष स्त्री पर
कितने अत्याचार करता है,उसके विकास में कितना बाधक है ,इस मुद्दे पर मोटी मोटी
कविता ,कहानी की पुस्तकें लिखने और शोध करनेवाली ऐसी महिलाएं यश और धन की लिप्सा
में अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा दांव पर लगाने में कोई हिचक नहीं रखतीं बल्कि गाहे ब
गाहे इसका प्रदर्शन करके इतराती फिरती हैं ।दाहिने हाथ में समझौता पत्र लेकर घूम
रही ये महिलाएं जब नगण्य सा कोई मौका पाते ही बायें हाथ की कलम से नारी विमर्श
करती हुई पुरुष वर्चस्वता और पुरुष प्रधान समाज व्यवस्था को गरियाने लगती हैं,तब
पुरुष मूंछों में मुस्कुराता हैऔर इन्हें अपने हक में इस्तेमाल करनेवाले समाज के
ठेकेदार शॉल श्रीफल प्रदान करते हैं।
आपसी प्रेम या सहमति
से होने वाले शारीरिक यौन संपर्क (चाहे सामाजिक रिश्ता कुछ भी हो)के बारे में क्या
बात करनी। चूंकि यह सार्वजनिक तौर पर घटित नहीं होता,निहायत निजी और गोपन एकांत
में होता है,अतः ऐसे अवैध रिश्तों से भी साहित्य जगत को क्या मतलब ,लेकिन यह क्या
कि स्त्री विमर्श के झंडे उठानेवाली तथाकथित महिलाओं को जब जब प्रेम हुआ किसी बड़े
संपादक से,बड़े अमीर से या बड़े राजनेता से ही हुआ।साहित्यिक रुचि की ही बात थी तो
उनका किसी अच्छे लेखक कवि साहित्यकार से प्रेम हो सकता था,ऐसा न होकर सिर्फ
समर्थवानों की ही शरणागति क्यों ?
इसे प्रेम कहा जाये
या क्षुद्र स्वार्थसिद्धि का योजनाबद्ध उद्देश्यपूर्ण साधन ? आज वही महिलाएं स्त्री अस्मिता और नारी गरिमा की
बातें बहुत ओजस्वी मुद्रा में करती हैं। ऐसी महिलाएं न सिर्फ देश विदेश के दौरे कर
आती हैं बल्कि राजनीतिक गलियारों में भी महत्त्वपूर्ण पद जुगाड़ लेती हैं।दिमाग पर
थोड़ा जोर डालिए ,दस बीस साल पहले तक समारोहों में संघर्षरत ऐसी कई महिलाएं अपनी
उम्र के उतार में ही सही कई महत्त्वपूर्ण पदों पर हैं।उन्होंने तीन चीजों का
इंवेस्टमेंट किया –थोड़ा समय ,थोड़ा साहित्य और थोड़ा चरित्र।उनसे प्रेरणा लेकर नई
पीढ़ी की भी कई लड़कियां अपनी जगह बनाने के लिए इस चूहा दौड़ में लगी हैं।आशीर्वाद
देने के लिए ,कृपा का कटोरा भरने के लिए लार टपकाते वृद्ध विद्वानों और महत्त्वपूर्ण
पदों पर विराजमान विभूतियों की कोई कमी तो है नहीं !
पहले से ही बहुत
बहुत बिगड़ी पुरुष मानसिकता ऐसी महिलाओं की वजह से और
बिगड़ती है और समाज में स्त्री की छवि दूषित होती है।देश के तमाम महानगरों –नगरों-
कस्बों में साहित्य के साथ ही विभिन्न कलाओं राजनीति आदि सभी क्षेत्रों में ऐसी
महिलाएं होती ही हैं,सो इनका समग्र प्रभाव नगण्य नहीं।
स्त्री विमर्श का
आशय स्त्री चरित्र से या त्रिया चरित्र से बिलकुल नहीं।स्त्री जैसी भी हो समाज में
उसकी स्थिति से है।उसके प्रति किये जा रहे अन्याय अत्याचार से है।उसकी दोयम दर्जे
की हालत से है।लेकिन यह सच है कि इन सभी बातों पर भी यानी स्त्री के समग्र विकास
,समूचे उन्नयन पर भी उपरोक्त मानसिकता वाली स्त्रियों के कार्यकलाप का नकारात्मक
प्रभाव पड़ता ही है और जब ऐसी ही महिलाएं आगे चलकर स्त्री विमर्श करने लगती हैं तो
पुरुषों को यह सारा तामझाम नाटक लगता है,फार्स लगता है।
महादेवी,सुभद्राकुमारी,आशापूर्णा
–महाश्वेता को सीढ़ियों की जरूरत नहीं पड़ी।कृष्णा सोबती ,मन्नू भंडारी,सुधा
अरोड़ा को वैसाखियों की जरूरत नहीं पड़ी,बल्कि इन्होंने तो अपने आसपास के
परजीवियों को झाड़ बुहारकर निकाल फेंका।मात्र अपनी प्रतिभा,मेहनत और सच्चाई के बल
पर खड़ी रहीं ।अस्तु पुरुष प्रधान भ्रष्ट समाज में भी नारी
गरिमा का 80%दायित्व नारी के ही हाथों में है।पुरुष उसे
वेश्या तो बना सकता है,देवी नहीं।
mob.08286442491
मेरी कुछ भोजपुरी रचनाएं
रासबिहारी पाण्डेय
1
रोजे बढ़ेला महंगाई,
रामराज ए भइया कहिया
ले आई ।
मोदी ले अइहें कि
राहुल ले अइहें
मीडिया ई कबले बताई
।
फ्रीज टीवी कूलर भइल
जाता सस्ता
महंगा हो कपड़ा दवाई
।
कर्जा पर कर्जा चढ़त
बा बिदेशी
आखिर ई कबले पटाई ।
एम पी एमेले करोड़न
में खेलें
गाँधी के देले दोहाई
।
रोज एगो नयका घोटाला
सुनाता
रामजी ई देसवा बचाईं
।
2
हमसे अनेत ई देखल
नाहीं जाता
दू रंग के दुनिया
बनवले बिधाता ।
बड़का जे चोरवा महल
में रहत बा
ककड़ी के चोरवा के
फाँसी दिआता ।
हाड़तोड़ मेहनत करे
जे दिन रतिया
काटेला जिनिगी सहते
संसतिया
आंटे अनाज नाहीं
आंटेला बस्तर
काल्हु के चिंता में
रोजे पिसाता ।
कुकुरन के आगे कहीं
बिस्कुट फेंकाता
आदमी इहां खइले बिन
तड़फड़ाता
घूमें दलाल इहां एअर
कंडीशन में
मेहनतकसवा के गोड़
भँउराता ।
कोई दिल्ली कोई बंबे
में बइठल
वर्ग सर्वहारा पर
देवेला लेक्चर
सभकर बा फोकस इहे
मनइया
तरह तरह के पैकेज
में बिकाता ।
अबरा के मउगी के भर
गाँव देवर
सभई मजा ले न केहू
के नेवर
थाना कचहरी जबरका के
बाटे
एमपी एमेले सबका से
नाता ।
3
करजे मे जिअना करजे
में मुअना
हर काम बाटे उधारी
में ।
ए भइया जिनिगी गइल
मोर बेगारी में...।
सातो दिन काम में न
कहियो आराम बा
रोटी कपड़ा मकान
तभियो हराम बा
दिल्ली के नोट
सरकारी पलान वाला
गँउवा में बँटे
रेजगारी में ।
पतई पर रोजे आपन
परान बा
कइसे कहीं देसवा
हमार ई महान बा
आसमान में टँग के
दिनवां में काम करीं
रतिया सड़क के
किनारी में ।
जेलवो में केहू पलँग
पर उँघात बा
घर वाला स्पेशल खाना
दिआत बा
खाक डर होई कानून आ
बेवस्था से
सुख भोगें जइसे
ससुरारी में ।
झिड़की आ गाली
मिलेला हर बात में
एके सांस सौ कमी
बतावेले जात में
चानी काटें हमनी के
मेहनत के बल पर ऊ
चलेले सूट आ सफारी
में ।
4
चलsनेता जी के आज
अभिनंदन करेके,
चौक में बइठा के
इनकर मुंडन करेके।ॉ
पाँच बरिस
अन्तर्ध्यान रहले,
आइल चुनाव फिर परगट
भइले,
गदहा साथे इनकर
गठबंधन करेके ।
अपराधी माफियन के
देले संरक्षण,
हर ओर इनकर फिक्स बा
कमीशन,
खाता के जाँच इनका
लंदन करेके ।
भर हीक जबले ई नाहीं
कुटइहें,
केतना घोटाला कइले
नाहीं बतइहें,
हार जूता के डाल
मनोरंजन करेके।
5
पढ़ लिख के बेकार
बइठले हो गइले नालायक,
इनसे नीक बाटे छोटका
बेपढ़ले भइल विधायक।
चोर आ पुलिस दूनो
हाजिरी लगावेले,
भइया भइया कहके
हुकुम बजावेले,
ठीकेदार ठीक से
कमीशन पहुँचावेले,
जिला भर लोग उद्घाटन
करावेले,
बड़कू एतना डिग्री
लेके भइले कवना लायक।
इनसे नीक बाटे छोटका
बेपढ़ले भइल विधायक।।
कहिये से देत बाड़े
बड़े कंपटीशन,
आजले ना सक्सेज भइल
इनकर मिशन,
रिटेन में छँटले
कहीं छँटले इंटरव्यू में,
आजले ई लागल बाड़े
नोकरी के क्यू में,
झूठ के एह दुनिया
में भइल बाड़े सच के गायक ।
इनसे नीक बाटे छोटका
बेपढ़ले भइल विधायक।।
6
राजघाट रउरा समाधि
पर फूल चढ़ावे गाँधी जी,
बाकिर रउरा मारग पर
ना केहू आवे गाँधी जी।
हर थाना हर कोट
कचहरी में बा फोटो टाँगल,
एह फोटो के नीचे
लोगवा भ्रष्टाचार में लागल,
केहू ब्लैक त केहू
एके ह्वाइट कहेला गाँधी जी,
सबका पाकिट में राउर
तस्वीर रहेला गाँधी जी,
सच्चा मन से नाहीं
केहू हृदय बसावे गाँधी जी।
जइसन छोड़ के गइलीं
रउआ हालत ओहसे बदतर बा,
महँगाई के हाल न
पूछीं चिन्ता रोज बहत्तर बा,
नेता मंत्री
व्यवसायी सब लूटपाट में लागल,
देस के चिंता केहू
के ना कइसन लहरा लागल,
जे पकड़ाला ऊहे खाली
चोर कहाला गाँधी जी ।
मो. 7208925984 / 8286442491
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