स्वानंद किरकिरे का नया नाटक
खिड़कियाँ फेस्टिवल में स्वानंद किरकिरे अभिनीत नाटक देखकर मन गुस्से और क्षोभ से भर गया है .कोई नपुंसक ही होगा जो इस नाटक के संवाद और दृश्यों को देखकर उत्तेजित न हो जाय .जिस गीतकार को नेशनल एवार्ड मिल चुका हो,उसका अभिनय के लिये ऐसे नाटक का चयन बहुत बड़ी नादानी ही नहीं सामाजिक अपराध भी है. ऐसे नाटक का केंद्रीय पात्र होकर किरकिरे कौन सा संदेश देना चाहते हैं या कौन सी सामाजिक चेतना लाना चाहते हैं ?अगर समाज में ऐसी कोई घटना हुई भी है तो वह निंदनीय है .साहित्य संगीत और कला से जुड़े लोगों की सामाजिक जिम्मेदारी बड़ी है .इनसे हुई चूक का खामियाजा पूरे समाज को भुगतना पड़ता है .संक्षेप में नाटक की कथा जान लें -एक अधेड़ उम्र का आदमी एक कम उम्र की बच्ची से उसकी सहमति से शारीरिक संबंध बनाता है लड़की उसे बचाना चाहती है मगर माता पिता पुलिस की मदद लेकर उसे जेल भिजवा देते हैं .वहां से छूटकर वह नाम बदलकर नयी जिंदगी शुरू करता है .लड़की उसे ढ़ूंढ़ते हुये कुछ साल बाद फिर मिलती है. पुरानी बातों को याद करते हुये दोनों पुनः संभोगरत होना ही चाहते हैं कि उसकी दूसरी पत्नी की बच्ची आ जाती है दोनो को मजबूरन निकलना पड़ता है .
पश्चिम का अनुकरण करने वालों हमारे संस्कारों के सूरज को पूरब से ही निकलने दो उल्टी धारा बहाकर अपयश ही मिलेगा : नाम को मिट्टी में क्यों मिलाते हो ?
पश्चिम का अनुकरण करने वालों हमारे संस्कारों के सूरज को पूरब से ही निकलने दो उल्टी धारा बहाकर अपयश ही मिलेगा : नाम को मिट्टी में क्यों मिलाते हो ?
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