Friday, 10 February 2017

काबिल काबिलेतारीफ है....



एक अंधा व्यक्ति जो डबिंग आर्टिस्ट है,किस प्रकार अपने आवाज की हुनर के बदौलत अपनी पत्नी के रेपिस्टों/हत्यारों से बदला लेता है,इसकी कहानी है काबिल।

आप कह सकते हैं कि कहानी पूरी फिल्मी है लेकिन निर्देशक ने पटकथा एवं संवादों के जरिये कहानी को जिस प्रकार प्रस्तुत किया है,वह दिल को छुए बिना नहीं रहती।पर्दे पर रेप सीन दिखाने का मोह बड़े बड़े निर्देशक नहीं छोड़ पाये हैं जिनमें कला फिल्मों के झंडाबरदार भी हैं(क्योंकि यह सीन देखने के लिए एक खास वर्ग बार बार सिनेमाघरों का रुख करता है) । तमाम बड़ी हिरोइनों को रीयल सिनेमा के नाम पर या कहिए कैरियर बचाये रहने की मजबूरी में यह सीन करते रहना पड़ा है।काबिल के निर्देशक भी शायद ही इसका मोह छोड़ पाते अगर फिल्म के निर्माता राकेश रोशन न होते ।राकेश रोशन एक अनुभवी फिल्मकार हैं और वे यह राज जानते हैं कि जब तक सॉलिड कहानी न हो, सिर्फ रेप सीन का बोल्डनेस किसी फिल्म को हिट या फ्लॉप नहीं करा सकता,अगर इस मोह में एक बड़ा वर्ग सिनेमा से जुड़ता है तो एक बड़ा वर्ग कट भी जाता है जो सपरिवार फिल्में देखने आता है।फिल्म में रेप के सीन को बड़े सलीके से एक छोटे से सीन में निपटा दिया गया है।

भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र में लिखा है कि अश्लील और हिंसात्मक दृश्यों की सूचना भर होनी चाहिए,उनका वीभत्स चित्रण नहीं क्योंकि दर्शकों के मन पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है।काश हमारे दूसरे निर्माता निर्देशक भी इस बात को समझ पाते?पुलिसतंत्र किस तरह नेताओं के इशारे पर चलता है और उनके मनी और मसल पावर के कारण आम आदमी कितना बेबस और लाचार है,कहानी में इस सूत्र को भी धारदार संवादों के जरिए रखा गया है।पुलिस अधिकारी प्रमुख के रूप में नरेंद्र झा की ओजस्वी संवाद अदायगी और सधा हुआ अभिनय उन्हें हिंदी सिनेमा में दूर तक ले जाएगा,ऐसी उम्मीद बँधती है।
 निर्माता राकेश रोशन,निर्देशक संजय गुप्ता,संवाद लेखक संजय मासूम समेत फिल्म से जुड़े सभी सदस्य बधाई के पात्र हैं।

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