रईस जैसी फिल्में क्यों बननी चाहिए ?
कलाओं का उद्देश्य मनुष्य को उदात्त बनाना और एक बेहतर समाज का निर्माण करना है न कि गलत उदाहरणों को जस्टीफाई करना।अगर किसी ने गलत रास्ते पर चलकर शोहरत और दौलत कमा लिया हो तो उसे महिमामंडित क्यों किया जाना चाहिए ?हिंदी सिनेमा के एक बड़े स्टार को उसकी भूमिका क्यों निभानी चाहिए?हमारे नेता भ्रष्ट हैं,जाति और मजहब के नाम पर जनता को भड़काकर अपना उल्लू सीधा करते हैं,यह बतानेवाली जाने कितनी ही फिल्में बन चुके हैं,रईस में वह सब कुछ भी अपने उसी दुहराव के साथ उपस्थित है।
हाजी मस्तान ,अरुण गवली से लेकर जाने कितने ही छोटे बड़े अपराधी जीवन के उत्तरार्द्ध में शरीफ बनकर जनसेवा के कार्यों में लग जाते हैं तो क्या उनके जुर्मों को भुलाकर चौराहों पर मूर्तियां लगवा देनी चाहिए?पुरानी कहावत है कि गंदगी पर पर्दा डालना चाहिए न कि उसे उकेर कर दिखाना चाहिए।ऐसे अपराधियों का पुलिस जब तक इनकाउंटर करती है,तब तक वे देश और समाज का बहुत अधिक नुकसान कर चुके होते हैं।फिल्म के आखिर में एक संवाद डाला गया है- इंस्पेक्टर साहब क्या मेरे मर्डर के खयाल के साथ आप जी पाएंगे?ऐसा क्यों भाई,तुमने जीवन में ऐसा क्या किया था?अगर कोई अपराधी अपने बीवी/बच्चों/लोगों को बचाने मोह में आत्मसमर्पण करता है तो क्या उसका अपराध कम हो जाता है ?रईस को इस बात का अफसोस है कि उससे धोखे से आरडीएक्स पार करवा लिया गया है जबकि शराब का धंधा करने में उसे कोई ग्लानि नहीं है।बम से तो लोग एक ही बार में मर जाते हैं जबकि नशे की गिरफ्त में आकर एक व्यक्ति न सिर्फ तिल तिल मरता है बल्कि उसके पूरे परिवार की ज़िंदगी नर्क हो जाती है।
भाई शाहरुख खान क्यों कर रहे हो ऐसी वाहियात फिल्म ?lकलाकार का भी कोई सामाजिक दायित्व / सरोकार होता है कि नहीं....अगर तुम इस बात को बिल्कुल नहीं समझना चाहते तो मुझे और कुछ नहीं कहना....!
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