Sunday, 25 September 2022
हिंदी राष्ट्रभाषा कब बनेगी ?
हिंदी दिवस,हिंदी सप्ताह और हिंदी पखवाड़ा मनाने के क्रम में हर सितंबर की भांति इस बार भी करोड़ों रुपए खर्च कर दिए जाएंगे।कार्यालयों में सबसे निवेदन किया जाएगा कि अधिकाधिक काम हिंदी में करें लेकिन इससे कितना फर्क पड़ेगा,यह सर्वविदित है।जब तक हिंदी को अंग्रेजी के साथ ऐच्छिक स्तर पर रखा जाएगा सरकारी या गैर सरकारी कार्यालयों में अधिकारी और कर्मचारी हिंदी में कामकाज के लिए क्यों प्रयत्नशील होंगे? पंजाब जैसे राज्य में अगर कामकाज पंजाबी में शुरू हो सकता है तो केंद्रीय सरकार के निर्णय से देश भर में हिंदी में कामकाज क्यों शुरू नहीं हो सकता ؟ लेनिन ने रूस में सत्ता में सत्ता पर काबिज होते ही फ्रांसीसी को खत्म कर दिया था। हर काम रूसी भाषा में होने लगा। यही काम तुर्की में कमाल पाशा ने किया। जर्मनी,फ्रांस, रूस,जापान, अमेरिका आदि देशों में चिकित्सा,इंजीनियरिंग और कानून की शिक्षा उनकी अपनी भाषा में दी जाती है। जापान जैसा छोटा देश आधुनिकीकरण और औद्योगिकीकरण में भारत से आगे है तो उसके पीछे भाषा का बहुत बड़ा हाथ है।भारत में आजादी के 75 साल बाद भी चिकित्सा, प्रबंधन,अभियांत्रिकी,कानून आदि की पढ़ाई के लिए हिंदी में पुस्तकें उपलब्ध नहीं है जिसके कारण अंग्रेजी माध्यम से पढ़े हुए विद्यार्थी ही इन पाठ्यक्रमों में प्रवेश ले पाते हैं।अगर अपने देश में हिंदी में इन विषयों की पढ़ाई शुरू हो जाय तो देश की तस्वीर बदलते देर नहीं लगेगी।
भारत के प्राथमिक कक्षाओं में 25 करोड़ से अधिक बच्चे पढ़ते हैं किंतु स्नातक स्तर तक पहुंचते-पहुंचते उनकी संख्या 40 लाख भी नहीं रह जाती क्योंकि अंग्रेजी में अनुत्तीर्ण होने के कारण वे दसवीं की परीक्षा ही नहीं लाँघ पाते और फिर उच्च शिक्षा का रास्ता उनके लिए हमेशा हमेशा के लिए बंद हो जाता है।
देश आजाद होने के बाद महात्मा गांधी ने बीबीसी को इंटरव्यू देते हुए कहा था कि दुनिया से कह दो कि गांधी अंग्रेजी भूल गया है। उन्होंने यह भी कहा था कि देश आजाद होने के छह महीने बाद भी यदि कोई आदमी संसद और विधानसभाओं में अंग्रेजी में बोलता हुआ पाया गया तो मैं उसे गिरफ्तार करवा दूंगा। आजादी के छह महीने पूरे होने से पहले ही गांधीजी की हत्या हो गई किंतु अगर वे जीवित होते भी तो शायद अपने सपने को साकार होेते न देख पाते।
सत्ता में शीर्ष पदों पर अंग्रेजी के इतने हिमायती बैठे हुए हैं जो नहीं चाहते कि हिंदी राष्ट्रभाषा बने,ऐसा होने पर उनका अपना अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा।सरकारी तौर पर अनिवार्य किए बगैर हिंदी कभी पूर्ण रुप से लागू नहीं हो सकती, इसलिए हिंदी के प्रति जागरूकता के कार्यक्रमों में जनता के पैसे की यह फिजूलखर्ची बंद होनी चाहिए।
वाचिक तौर पर हिंदी की अनिवार्यता पूरे देश में सिद्ध हो चुकी है।हिंदी जाने बगैर भारत में न तो व्यापार किया जा सकता है,न ही राजनीति। राजनीतिज्ञ और विदेशी उपक्रम इसे भली-भांति समझ चुके हैं। भाजपा के सत्तासीन होने में हिंदी की बहुत बड़ी भूमिका रही है।नरेंद्र मोदी समेत भाजपा के सभी नेताओं ने जनता से सिर्फ हिंदी में संवाद किया और अच्छे दिन लाने के सपने दिखाए। फिलहाल केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार है वह चाहे तो हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा देकर इतिहास में अमर हो सकती है,वर्ना राजभाषा के रूप में उसकी दुर्दशा पर आंसू बहाते रहने के लिए हम अभिशप्त हैं ही।
-रासबिहारी पाण्डेय
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment