Thursday, 15 September 2016

      मेरे पाँच गीत


                                             रास बिहारी पाण्डेय

1

खुशियों से आँगन महके
हर कोई गीत गाने लगा
बच्चे का जन्म क्या हुआ
घर भर तुतलाने लगा ।

कोई चाँद लाये
कोई तोड़ता है तारा
खुशियों के सागर का
ना कोई किनारा

हिचकी भूले से आये उसे,
तो घर भर दुलराने लगा ।

जन्म के ही साथ
जुड़ गये कितने रिश्ते
दादा नाना मामा
बुआ मौसी मौसे

कोमल कपोलों को चूमकर,
हर कोई रिश्ता जतलाने लगा ।

छूटी ठाकुरपूजा 
छूटी ठकुरानी
लोरी की धुन ही 
लागे अमृतबानी

भाँति भाँति के लिये खिलौने,
हर कोई रिझाने लगा ।



2

तेरे बिन ऐसे कटता है
हर दिन मेरा प्रवास में
जैसे राम बिना सीता के 
आये हों बनवास में ।

राम की एक अवधि थी लेकिन
अपने दिवस अनिश्चित
राम ने वन में बिताया हमको
मिले हैं शहर अपरिचित

शाप लगा है जाने किस 
नारद के उपहास में ।

जितना सरल समझ बैठे थे
उतना कठिन है जीवन
एक तुम्हारे बिना ही कितना
एकाकी है यह मन

खैर तेरी ही माँगी हमने 
हर पूजा उपवास में ।


3

नाम को अर्थ भी मिल गया 
ज़िंदगी ज़िंदगी हो गई
हमसफर जबसे तुम हो गये
धूप भी चाँदनी हो गई ।

क्या बताऊँ कि इस रूप में 
कौन सा एक रतन मिल गया
चाह थी पंखुड़ी की जिसे 
उसको पूरा सुमन मिल गया

अब तो सावन से दिन हो गये
फाग सी यामिनी हो गई ।


प्यार की राह में जो मिटे 
ऐसे जग में अनंत हो गये
प्यार जिनको न मन का मिला
वे ही ऋषि मुनि औ संत हो गये

प्यार बिन ज़िंदगी जो मिली
दर्द की रागिनी हो गई ।


4

पग पग पर हर पल 
मन को समझाना पड़ता है
अपनी शर्तों पर जीने का
मोल चुकाना पड़ता है ।

गाँधी और भगत सिंह दोनों
अमर हुये इतिहास में
अपने अपने तर्क थे
दोनों के अपने विश्वास में

किन पृष्ठों में नाम लिखाना
लक्ष्य बनाना पड़ता है ।

अनुबंधों वाले जीवन में
अपनी बात कहोगे क्या
पिंजर में यदि पंख रहें तो 
आसमान में उड़ोगे क्या

परबस होकर जिह्वा
तोताराम बनाना पड़ता है ।


5

चाँद से ज्यों छिन जाय चाँदनी
हो संगीत से दूर रागिनी
बादल से विलगे ज्यों दामिनी
टूटे हरेक कड़ी
तेरे बिन यूँ बीते हरेक घड़ी ।

वे भी दिन थे पतझर में तू
सावन बन आयी थी
इस नीरस जीवन में गंगा
बनकर लहरायी थी

अब तो आँखें चातक जैसी 
बारह मास गड़ी।


तुम बिन एक तरह लगता है
क्या फागुन क्या सावन
हर तस्वीर अधूरी  
जबसे टूटा मन का दर्पन

बनना था गलहार मेरा

किस मुँदरी में जड़ी ।




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