Wednesday, 28 April 2021
हर बार न मिलने की कसम खाके मिले हम.....
हर बार न मिलने की कसम खाके मिले हम
(हस्तीमल हस्ती की ग़जलों से गुजरते हुए…)
-रासबिहारी पाण्डेय
ग़ज़ल आज भी हिंदी कविता के केंद्र में नहीं है ,लेकिन छंदमुक्त कविता के बाद सबसे अधिक लिखी जाने वाली कविता ग़ज़ल के ही रुप में है।यह और बात है कि अधिकतर लोग आज भी रदीफ काफिया और वजन बहर में ही उलझे हुए हैं ।सागरोमीना, खुम ,साकी,मयखाना, लब ,रुखसार ,जुल्फ जैसे आरंभिक प्रतीकों को लेकर ग़ज़ल लिखने और मुशायरों में आरोह अवरोह के साथ पढ़ते हुए दाद की भीख मांगने वाले शायरों की आज भी अच्छी खासी संख्या है।फिलहाल ग़ज़ल फैशन में सबसे अधिक है। नई कविता के समर्थ कवि मरहूम विष्णु खरे भी ग़ज़ल कहने का मोह नहीं छोड़ पाये ।यह और बात है कि अपनी ग़ज़ल को वे लँगड़ी ग़ज़ल कहते रहे।कवि सम्मेलन और मुशायरों में पढ़ी जानेवाली बहुतेरी ग़जलें इतनी सतही होती हैं कि उन्हें सुनकर मेलों में बिकने वाली जीजा साली की शायरी टाइप किताबों की याद आने लगती है।
किसी शायर ने मुझे एक शेर सुनाया था-
कई शोहदे हैं बेचारी के पीछे ...
ग़ज़ल अस्मत बचाती फिर रही है।
और यह भी कि ….
शायरी खेल नहीं है जिसे बच्चे खेलें
कलेजा चाक हो जाता है सदमे सहकर
हिंदुस्तान पाकिस्तान और दुनिया के दूसरे मुल्कों में ग़ज़ल कहने वालों की भारी भीड़ है, लेकिन इस भीड़ में अलग दिखने वाले कुछ नामों का जिक्र करना हो तो मैं उनमें से एक नाम हस्तीमल हस्ती का जरूर लूंगा। ग़ज़ल बहुत नाजुक विधा है । वह पूरी तौर से नजाकत की मांग करती है। हस्ती ने बहुत हद तक इसका नाज उठाया है ।ग़ज़ल कहनेवाले बड़े-बड़े शायरों के भी दस बीस शेर ही मकबूल हो सके हैं ।अगर किसी शायर के दस बीस शेर मशहूर हो जाएं और लोग उसे उद्धृत करने लग जाएं तो यह बहुत बड़ी बात है।
नासिर काजमी ने इंतजार हुसैन को दिए एक इंटरव्यू में कहा है कि अच्छे शायर की पहचान यह है कि उसके शेर सुनकर तुम्हें किसी दूसरे शायर का शेर याद न आए, अगर मेरा शेर सुनकर तुम्हें ग़ालिब का कोई शेर याद आ गया तो हाथी के पांव के नीचे जो चींटी का हाल होता है ,वही हाल मेरा होगा ।यह एक बहुत बड़ी कसौटी है ।हस्ती जी के शेर पढ़कर ऐसा कभी नहीं हुआ कि किसी और का कोई शेर याद आने लगा हो। आजकल तो ऐसे शायरों की भरमार हो गई है जो एक ही खयाल को अलग रदीफ़ काफिये में ढ़ालकर अपनी ग़ज़ल बना लेते हैं ।टोकने पर कहेंगे -भाई यह तो रिवायत है ।लोग मिसरों में गिरह लगाते ही रहते हैं ।
आमफहम जुबान और मुहावरेदार भाषा में कही गई हस्तीमल हस्ती की गजलें मन को छूने वाली हैं।उनकी शायरी बातचीत की शायरी है।वे शब्दों से नहीं ,भावों से खेलते हैं-
तुम क्या आना जाना भूले ,
हम तो हंसना हंसाना भूले .
रंग वो क्या है जो उतर जाए ,
जो चली जाए वह खुशी भी क्या .
साहिल से बढ़ जाए आगे ,
सौ में एक लहर होती है.
हस्ती जी ने जीवन की सबसे गूढ़ बातों को शायरी में सबसे सरल शब्दों में व्यक्त किया है ।उन्होंने समस्त संस्कारों और अध्यात्म के शाश्वत सत्य को निचोड़ कर रख दिया है -
रिसते हैं तालाब नदी सब,
खेल नहीं है खुद में रहना .
बरसों रुत के मिजाज सहता है ,
पेड़ यूं ही बड़ा नहीं होता .
कतरा के न चलिए कभी पथरीली डगर से ,
आसान सी राहों में खजाने नहीं आते .
उनकी शायरी में तर्क से परे और अपवाद से बिल्कुल हीन ऐसे मिसरे हैं जो हर किसी के हृदय में अपना स्थान बना लेने में सक्षम हैं ।वे जो कहते हैं तीनों काल में उसका विश्वास कभी धुंधला नहीं हो सकता ।वे जागतिक सत्य को तो प्रकट करते ही हैं साथ साथ पाठकों को सावधान करते हुए भी चलते हैं -
कोई मोहब्बत से है खाली कोई सोने चांदी से ,
हर झोली में हो हर दौलत यह कैसे हो सकता है.
बारिशों के सभी अंदाज गलत निकलेंगे ,
सिर्फ सोचेंगे अगर आप घटा को लेकर .
खुद चिराग बन के जल वक्त के अंधेरों में ,
भीख के उजालों से रोशनी नहीं होती.
मुझे उनके साथ बहुतेरे कवि सम्मेलनों में जाने का अवसर मिला है। जैन धर्म के उन संन्यासियों के बीच भी जहां कवियों को ताली बजाकर या वाह-वाह से दाद नहीं दी जाती बल्कि हाथ को ऊपर उठाकर पांचों उंगलियों को गोलाकार बनाकर दाद देने का प्रचलन है ।जैन धर्मावलंबियों के अनुसार ताली बजाने से जीव हत्या होती है ।शायद इसीलिए वे सूर्यास्त के बाद भोजन भी नहीं करते।
एक किस्सा है कि मोमिन के एक शेर ‘ तुम मेरे पास होते हो गोया,जब कोई दूसरा नहीं होता ‘ के लिए ग़ालिब ने कहा था कि मेरा पूरा दीवान ले लो ,बस यह एक शेर दे दो।दौरेहाजिर के शायरों का हाल कुछ और है ... अच्छे शेर पर तो खामोश रहेंगे लेकिन कमजोर शेर पर सबसे ज्यादे दाद देंगे ताकि शायर की कमजोरी दूसरों की नजर में तुरत आ जाये।हस्ती जी की ग़ज़ल का एक शेर -
हर बार न मिलने की कसम खाके मिले हम,
अपने ही इरादों पे अमल क्यों नहीं होता …..
मेरे दिल के बहुत करीब है और मैं भी कुछ वैसे ही उनका मुरीद हो जाता हूँ जैसे चचा ग़ालिब मोमिन के हो जाते हैं।कुछ रचनाकार अपनी रचनाओं में भी अपनी पराजय,दुख,संत्रास की बात नहीं करते लेकिन विश्व साहित्य इस बात का गवाह है कि अगर अपनी बेबसी और हार को भी ईमानदारी से कहें तो दुनिया उसे सर आँखों पर लेती है।आजकल हिंदी फिल्मों में सैड सौंग आने बंद हो गये हैं लेकिन सुनने वाले दर्द भरे पुराने गीत ग़जलों को आज भी खूब सुनते हैं।
हैं सबसे मधुर वे गीत जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं … हस्ती की ग़जलों में भी इस दर्द की तासीर खूब है -
साया बनकर साथ चलेंगे इसके भरोसे मत रहना
अपने हमेशा अपने रहेंगे इसके भरोसे मत रहना
बहती नदी में कच्चे घड़े हैं रिश्ते,नाते ,हुस्न ,वफा
दूर तलक ये बहते रहेंगे इसके भरोसे मत रहना
नये दौर के आलोचकों ने विचार प्रधान कविता को सुपर कविता बताकर रेखांकित करना शुरु किया,लेकिन सिर्फ विचार ही कविता बन जाता तो दुनिया के सारे दार्शनिकों को लोग कवि मान चुके होते।विचार संवेदना में कितना गहरा छन पाता है और उसमें किसी के मन को छूने की कितनी शक्ति आ पाती है,कविता की असल परीक्षा यहाँ होती है।
हस्ती जी की शायरी में संसद के कामकाज और समकालीन राजनीतिक विसंगतियों पर भी बहुत पैना वार है ….
मुझे लगता नहीं हालात पर कुछ बात भी होगी,
अभी तो रहनुमा झगड़ेंगे बैठक मुल्तवी होगी।
इल्जाम दीजिए न किसी एक शख्स को,
मुजरिम सभी हैं आज के हालात के लिए।
कुछ नये सपने दिखाये जाएंगें
झुनझुने फिर से थमाये जाएंगे।
मुंबई में मेरे शुरुआती कुछ साल सांताक्रुज में गुजरे।स्टेशन के पास ही उनके जेवरों की दुकान ज्वेलरी इंपोरियम है।इस तरह उनसे सहज ही मुलाकातें होने लगी थीं।वो काग़ज की कश्ती वो बारिश का पानी...जैसा अमर गीत लिखनेवाले शायर सुदर्शन फ़ाकिर से मेरी मुलाकात इसी दुकान पर हुई थी।फ़ाकिर साहब जब तक मुंबई में रहे, हर शाम यहाँ दिख जाते।हस्ती की मशहूर ग़ज़ल -
प्यार का पहला खत लिखने में वक्त तो लगता है
नये परिंदों को उड़ने में वक्त तो लगता है…
फ़ाकिर साहब के जरिये ही जगजीत सिंह तक पहुँची थी।
अधिकतर लिखने पढ़ने वाले लोग संपादन /संयोजन के झमेले में नहीं पड़ते,लेकिन हस्ती जी ने न सिर्फ त्रैमासिक काव्या के ६० अंक निकाले बल्कि अनेक साहित्यिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया । खासतौर से मुंबई के बाहर से आने वाले कवि शायरों के सम्मान में नशिस्तें ... उन्होंने जीवन और जगत के तमाम रहस्य और सारभूत तत्वों को अपनी शायरी में उतारा है और अपना एक बड़ा पाठक वर्ग बनाया है।
मेरी शुभ कामना है कि वे समस्त चेतनाओं के साथ शतायु हों और सृजनशील बने रहें।
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