'ओपनहाइमर' ने की हिंदू आस्था पर चोट
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रासबिहारी पाण्डेय
हाल ही में भारतीय सिनेमाघरों में रिलीज हुई अमेरिकी फिल्मकार क्रिस्टोफर नोलन की फिल्म 'ओपनहाइमर' में श्रीमद्भगवद्गीता को गलत ढंग से प्रस्तुत करने की दुनिया भर में आलोचना हो रही है।इस बयोपिक में विश्व का पहला एटम बम बनाने वाले वैज्ञानिक जे. रॉबर्ट ओपेनहाइमर का किरदार निभा रहे सिलियन मर्फी अभिनेत्री फ्लोरेंस पुग के साथ सहवास करते हुए गीता के कुछ श्लोक पढ़ रहे हैं और उसका अर्थ समझाने का प्रयास कर रहे हैं।
गीता एक ऐसा ग्रंथ है जिसे दुनिया भर के विद्वान,कवि, लेखक, दार्शनिक अपने अपने संबोधनों में उद्धृत करते रहते हैं।ओपनहाइमर स्वयं भगवद्गीता से बहुत प्रभावित थे और गीता को सम्यक रूप से समझने के लिए उन्होंने संस्कृत भाषा का भी अध्ययन किया था। परमाणु परीक्षण के बाद उन्होंने गीता से यह श्लोक उद्धृत किया था-
कालोस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो
लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।
ऋतेsपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येsवस्थिताःप्रत्यनीकेषु योधा:।।
।।११.३२।।
(अपना विराट रूप दिखाते हुए भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं- हेअर्जुन!मैं लोकों का नाश करने वाला महाकाल हूं। इस समय इन लोगों को नष्ट करने के लिए प्रवृत्त हुआ हूं।जो प्रतिपक्षियों की सेना में स्थित योद्धा लोग हैं, वे सब तेरे बिना भी नहीं रहेंगे।)
ओपेनहाइमर ने अहंकार में यह श्लोक उद्धृत किया था,यह जताने के लिए कि सिर्फ भगवान के हाथ में ही विनाश नहीं रह गया है,मैंने भी ऐसा बम निर्मित कर लिया है जिससे दुनिया खत्म कर सकता हूँ।ज्ञातव्य है कि16 जुलाई 1945 को लाल एलामोस से 340 किलोमीटर दूर दक्षिण में ओपनहाइमर के नेतृत्व में प्रथम परमाणु परीक्षण किया गया था और फिर एक माह से भी कम समय में 6 अगस्त 1945 को अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर एटम बम बरसाया था।
निर्देशक क्रिस्टोफर नोलन ने फिल्म को विवादास्पद और चर्चित बनाने के लिए जानबूझ कर श्रीमद्भगवद्गीता की पंक्तियों को नितांत अंतरंग क्षणों में आपत्तिजनक रूप से प्रयोग किया है। विश्व के सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रंथ गीता के साथ-साथ यह सनातन संस्कृति का भी अपमान है।
इससे भी बड़ा ताज्जुब यह है कि भारतीय सेंसर बोर्ड द्वारा इस सीन को बिना कोई आपत्ति जताये पास कर दिया गया और यह पूरे भारत में बिना किसी रोक टोक के चल रही है।
सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने भी इस पर आपत्ति जताई है। दुनिया भर के फिल्मकारों की नजर भारत के युवा दर्शकों पर रहती है। उन्हें पता है कि अगर एक बार किसी तरह उनकी फिल्म भारत में विवादित हो गई तो न सिर्फ करोड़ों का बिजनेस होगा बल्कि मुफ्त में ही भरपूर पब्लिसिटी भी मिल जाएगी।भारतीय मीडिया इस पर चर्चाएं आयोजित करेगा। कुछ लोग इसके समर्थन में तो कुछ लोग इसके विरोध में लेख लिखेंगे। दोनों ही स्थितियों में लाभ उसी का होगा।अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कला में प्रयोग के नाम पर ऐसी छूट नहीं ली जा सकती कि करोड़ों लोगों की आस्था आहत हो जाए।
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