साहित्यकारों को भारत रत्न क्यों नहीं ?
रासबिहारी पाण्डेय
केंद्र सरकार ने लालकृष्ण आडवाणी,बिहार के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके स्व.कर्पूरी ठाकुर,चौधरी चरण सिंह,वैज्ञानिक एस रामानाथन और पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंहाराव को सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न देने का निर्णय किया है। ऐसी शख्सियतों को यह सम्मान देना सर्वथा उचित है। ऐसी कई और शख्सियतें हैं जिन पर हमारे देश को नाज है। उन्हें चिन्हित कर समाज के सामने आदर्श उपस्थित करना हमारी जिम्मेदारी है।
भारत रत्न प्रदान करने की शुरुआत २ जनवरी १९५४ को हुई।तब तीन विभूतियों चंद्रशेखर वेंकट रमन, सर्वपल्ली राधाकृष्णन और के सी राजगोपालाचारी को
एक साथ यह सम्मान प्रदान किया गया था। इसके बाद भी कई बार भारत रत्न के लिए तीन व्यक्तियों के नाम की घोषणा एक साथ हुई।जनता पार्टी ने१९७७ में इसे बंद कर दिया था।१९८० में पुन:शुरुआत हुई तो समाज सेविका मदर टेरेसा को यह सम्मान दिया गया। भारत रत्न के लिए यह प्रावधान नहीं कि इसे सिर्फ भारतीय नागरिक को ही प्रदान करना है, इसलिए दो गैर भारतीय,१९८७ में खान अब्दुल गफ्फार खान और १९९७ में नेल्सन मंडेला को यह सम्मान प्रदान किया गया। भारत रत्न अधिकतर राजनीतिक शख्सियतों को दिया गया है। गायन, संगीत और खेल जगत को तो यह सम्मान मिल चुका है किंतु किसी भी भारतीय भाषा के किसी वरिष्ठ साहित्यकार को अब तक यह सम्मान नहीं दिया गया है। १९५५ में डॉ.भगवान दास को भारत रत्न दिया गया था किंतु उनकी ख्याति लेखक के रूप में कम शिक्षाशास्त्री,स्वतंत्रता सेनानी और कई संस्थाओं के संस्थापक के रूप में अधिक है। हिंदी देश को एकता के सूत्र में पिरोने वाली सबसे प्रमुख भारतीय भाषा है। क्या हिंदी का कोई प्रतिनिधि रचनाकार या एक से अधिक रचनाकार भारत रत्न पाने की योग्यता नहीं रखते ?क्या हमारे निराला,प्रेमचंद या रवींद्रनाथ ठाकुर को यह सम्मान नहीं मिलना चाहिए?
साहित्य तो देश और काल की सीमाओं को लांघ जाता है। गोर्की,चेखव,टॉल्सटाय,तुलसी,कबीर जैसे रचनाकार सिर्फ अपने देश के गौरव नहीं,पूरे विश्व और समूची मानवता के धरोहर हैं। शब्दों की पहुंच सबसे अधिक है। सोम ठाकुर एक गीत में कहते हैं-
उनके परचम भले ही किलों पर रहे
पर दिलों पर हुकूमत हमारी रही।
...बावजूद इसके क्या इस सम्मान के जरिये साहित्यिकों की शिनाख्त नहीं की जानी चाहिए ?
साहित्यकारों के साथ सत्ता हमेशा अन्याय करती है।जीवन काल में बिरले रचनाकारों को ही अपेक्षित मान और धन प्राप्त हो पाता है।नेता,अभिनेता और कलाकार समाज से अपने अवदान के बदले जितना प्राप्त कर पाते हैं,क्या साहित्यकार उतना प्राप्त कर पाता है...उत्तर होगा-बिलकुल नहीं,जबकि उसका अवदान इन सबसे अधिक मायने रखता है।
एक बात और... विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्यों के जरिये सेलीब्रिटी का दर्जा पा चुकी वे शख्सियतें जो पैसा कमाने की रेस में टीवी पर तेल,साबुन और सीमेंट बेचने में लगी हैं,क्या उन्हें हम अपना भारत रत्न स्वीकार कर पाएंगें? चुटकुलों और फिल्मी पैरोडियों को कवि सम्मेलनों में सुना सुना कर कवि बने कुछ लोग अपनी राजनीतिक पहुंच के कारण पद्मश्री हासिल कर चुके हैं।उनके बारे में समाज में कितनी वितृष्णा है?क्या भविष्य में भारत रत्न का भी यही हाल होने वाला है कि हम चाय पीते हुए टीवी पर उसे यह बताते हुए पायें कि कौन सी चाय और कौन सा नमकीन सबसे अच्छा है?
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