दोस्त!मेरे मज़हबी नग्मात को मत छेड़िए!
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रासबिहारी पाण्डेय
सनातन संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ है नित्य,अनादि,शाश्वत अर्थात् जो परंपरा से हमारे बीच मौजूद है वह सनातन है। सनातन धर्म जिसे हिन्दू धर्म अथवा वैदिक धर्म के नाम से भी जाना जाता है,यह दुनिया के सबसे प्राचीनतम धर्म के रूप में जाना जाता है। भारत की सिंधु घाटी सभ्यता में हिन्दू धर्म के कई चिह्न मिलते हैं।
बाबर,औरंगजेब,चंगेज खान,महमूद गजनवी,मोहम्मद गोरी,अहमद शाह अब्दाली जैसे अनेक आक्रांता सनातन धर्म को ख़त्म करने का ख्वाब सँजोए हुए काल कवलित हो गए।हालांकि अपने जमाने में वे लाखों की संख्या में धर्मांतरण कराने में सफल रहे ,फिर भी सनातन की पताका निर्बाध लहरा रही है।भारतीय संस्कृति और सनातन के उन्मूलन के लिए मुगलों ने अनेक शहरों के नाम बदले,अनेक मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बना डाले मगर भारत में वे अपने पंथ को पूरी तरह स्थापित नहीं कर सके।अंग्रेजों ने शिक्षा पद्धति बदली और भारत को अपने अनुरूप ढ़ालना चाहा, बावजूद इसके हमारी संस्कृति यथारूप विद्यमान है। धर्मनिरपेक्ष आजाद भारत में जब कोई सनातन के उन्मूलन की बात करता है तो हँसी आती है। हाल ही में एक समारोह में
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के पुत्र डीएमके सरकार में मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने कहा कि सनातन धर्म मलेरिया और डेंगू की तरह है जिसे समूल मिटाना ज़रूरी है।उन्हें शायद यह भान नहीं है कि अपनी पिछली पीढ़ियों का मुआयना करेंगे तो पता चलेगा कि वे स्वयं भी सनातन के ही वंशज हैं। उदयनिधि के अनुसार
सनातन धर्म एक सिद्धांत है जो जाति और धर्म के नाम पर लोगों को बांटता है,यह सनातन की सरासर गलत व्याख्या है।भगवान राम ने निम्न जाति के केवट और निषाद को गले लगाया।सबरी के जूठे बेर खाये और बगैर जाति धर्म जाने वन गमन की राह में ग्रामवासियों का स्वागत सत्कार स्वीकार किया।
श्रीमद्भागवत के दशम् स्कंध के चतुर्थ अध्याय के ३९वें श्लोक के अनुसार -
मूलं हि विष्णुर्देवानां यत्र धर्म: सनातन:।
तस्य च ब्रह्म गोविप्रास्तपो यज्ञा:सदक्षिणा:।।
देवताओं की जड़ विष्णु वहाँ रहते हैं, जहाँ सनातन धर्म है।सनातन धर्म की जड़ हैं- वेद, गौ ,ब्राह्मण,तपस्या और वे यज्ञ जिनमें दक्षिणा दी जाती है।
पश्चिम के देश सनातन धर्म से जुड़कर स्वयं को गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं।इस्कॉन के मंदिरों में धोती कुर्ता पहने कृष्ण भक्तों को देखा जा सकता है।ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक पिछले दिनों मोरारी बापू की कथा में जय श्रीराम बोलते हुए दिखे।सनातन धर्म बिना किसी भेदभाव के 'वसुधैव कुटुंबकम्'यानी पूरी धरती अपना परिवार है,इस लीक पर चलनेवाला है लेकिन उदयनिधि जैसे लोग गलत व्याख्या करके समाज में विषमता का जहर घोलते हैं।
राजनीति का अंतिम लक्ष्य सत्ता प्राप्ति है।जनमत के ध्रुवीकरण के लिए नेतागण ऐसे जुमले उछालते हैं ताकि उनके पक्ष में माहौल बने।
ऐसे नेताओं के लिए अदम गोंडवी के ये शेर बहुत मौजूं हैं-
हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ
मिट गए सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िए
हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है
दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िए
छेड़िए इक जंग, मिल-जुल कर ग़रीबी के ख़िलाफ़
दोस्त! मेरे मज़हबी नग़्मात को मत छेड़िए।
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